पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२९८

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of expression will be best represented by a verse in ballad measure,-

रू० ४९-श्री० ग्राउज़ महोदय ने इस छंद का अत्यंत सुंदर अनुवाद में इस प्रकार किया है, -

"So pants the warrior for the break of day.
As parted love birds for the sun's first ray.
So pants the warrior for the close of the night.
As saints on earth crave heaven's full power and light.
So pants the warrior for the battle morn,
As restless lovers, of their love forlorn.
So pants the warrior for the rising sun
As sick men pray that the long night be done.
So longed the warrior camp for break of day .
As beggars long a prince might pass their way.
So longed the monarch for the orient fire
As faithful widows for the funeral pyre."

F. S. Growse. M, A., B. C. S.
[ Indian Antiquary. Vol III, p. 341.]

"यों प्रात सूर बंछई ज्यौं सु बंछे बर रोगी” इस पंक्ति का सार 'रासो-सार' पृष्ठ १०२ में यह है कि " इतना कहकर पृथ्वीराज रात्रि के शेष दो पहर व्यतीत कर सूर्योदय की इस प्रकार इच्छा करने लगा जैसे कठिन व्याधि पीड़ित रोगी जन वैद्य के द्वार पर जाने के लिए ।” रासो-सार के लेखकों ने सोचा होगा कि आखिर कठिन-व्याधि- पीड़ित रोगी सूर्योदय की इच्छा क्यों करेगा और बिना थोड़ा बहुत विचार किये ही लिख दिया होगा के द्वार पर जाने के लिये । किंचित् शब्दों के अर्थ का विचार कीजिये जो कठिन-व्याधि- पीड़ित है वह शय्या पर करवट तो ले नहीं सकता फिर वैद्य के द्वार तक जाने की सामर्थं कौन देगा।

श्री ह्योनले महोदय 'वर- रोगी' का लाक्षणिक अर्थ न समझ कर 'वर' का वाचक अर्थ 'वरदान' लगाते हैं और लिखते हैं कि “शूरवीर प्रात:काल की उसी प्रकार इच्छा करते हैं जैसे रोगी बर (blessing) की।