पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३०

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हुया है ! इन वनों को हटा देने से कोई बाधा पड़ने की संभावना भी नहीं है। महाभारत, भागवत और भविष्य-पुराण आदि के आधार पर राजा परीक्षित के तक्षक-दंशन, जनमेजय के नाग-यज्ञ और शाबू पर्वत के उद्धार तथा दशाब्तार की कथा ऐसे ही प्रसंग हैं। इनके अतिरिक्त अन्य छोटे स्थलों की भी एक संख्या है । तथा पृथ्वीराज की जिज्ञासा पूर्ति हेतु कवि द्वारा समाधान किये गए अनेक मनोहर उपाख्यान जुड़े हुए हैं जो उसकी जानकारी, अनुभव, प्रत्युत्पन्नमति तथा विशाल अध्ययन के परिचायक हैं। इनमें विनोद की मात्रा भी यथेष्ट है ।।

वस्तुओं के विस्तृत वर्णन और व्यापार मनुष्य की रागात्मिको वृत्ति के अलम्बन हैं तथा इनसे भिन्न-भिन्न स्थायी-भावों की उत्पत्ति होने के कारण इनमें रसात्मकता का पूरा अाभास मिलता है। पाश्चात्य महाकाव्यों में रस स्थान पर वस्तु-वर्णन को ही प्रधानता दी गई है ।

भावाभिव्यंजना

रासो युद्ध-प्रधान काव्य है और पृथ्वीराज-सदृश बीर योद्धा का जीवन-वृत्त होने के कारण इसमें उस समय की आदर्श वीरता का चित्रण मिलता है। क्षात्र-धर्म और स्वामि- धैर्स निरूपण करने वाले इस काव्य में तेजस्वी क्षत्रिय वीरों के युद्धोतह तथा तुमुल और बेजोड़ युद्ध दर्शनीय हैं । असार संसार में यश की श्रेष्ठता और प्रधानता को दृष्टिगत करके उसकी प्राप्ति स्वामि-धर्न पालन में निहित की गई है। स्वामि-धर्म की अनुवर्तिता का अर्थ है प्रतिपक्षी से युद्ध में तिल-तिल करके कट जाना परन्तु मुंह न मोड़ना । इस प्रकार स्वामि-धर्म में शरीर नष्ट होने की बात को गौण रूप देकर यश सिरमौर कर दिया गया है । और भी एक महान प्रलोभन तथा इस संसार और सांसारिक वस्तुओं से भी अधिक आकर्षक भिन्न लोक-वास तथा अनन्य सुन्दरी अप्सराय की प्राप्ति है। धर्म-भीर और त्यागी योद्धा के लिए शिव क} मुडमाला में उसका सिर पोहे जाने तथा तुरन्त मुक्ति-प्राप्ति आदि की व्यवस्था है । कर्म-बन्धन को मिटाने वाले, विधि के विधान में संधि कर देने वाले, युद्ध की भयंकर विषमता से क्रीड़ा करने वाले भीष्म सूर सामंत स्वामी (पृथ्वीराज) के कार्य में मति रखने वाले हैं, स्वाभि-कार्य में लगकर इन श्रेष्ठ मति वालों के शरीर तलवार के बारों से खंड-खंड हो जाते हैं और शिव उनके सिरों को अपनी मुडमाला में डाल लेते हैं । क्षत्रिय शरीर का केवल स्वामि-धर्म ही साथी है जो कम के भेग से छुटकारा दिल सकता हैं । शर सामन्तों का स्वामि-धर्म धन्य है क्योंकि वे लड़ना और मरना ही जानते हैं।"——इस प्रकार के विचारों से रासौ ओतप्रोत है। उस युग की वीरता का यह आदर्श कि