पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३१२

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( ७४ ) उतंसंग तुट्ट परै औन धारी । बारी ॥ भारी । मनो दंड की अगी बाइ न कंध बंध हर्के सीस तहाँ जोगमाया जकी सी' विचारी ।। ० ७५ चढ़ी सांग लग्गी बजी धार धारं । हां से दूनू करै मार मारं ॥ नचे रंग भैरू है ताल बोरं । सुरंग अच्छरी बंधि नारद तीरं ॥ ॐ० ७६ । इसी जुद्ध व उबद्धउ भानं । भिरै गोरिया सेन अरु चाहुत्रानं ॥ करें कंडली तेग वग्गी श्रमानं । मनो मंडली रास तं कन्ह ठानं ॥ छं० ७७ । फुटी आवधं माहि सामंत सूरं । बजे गोर और मनो बज्ज भूरं ॥ लगै धार धारं तिनै धरह तुट्टै । दुहुँ कुम्भ भग्गै करके अहुई । इं० ७८ । फुटी श्री भोमं अपी४ बिंब राजं । मनो मेघ बुड्ढें प्रथम्मी" समाजं ॥ पराक्रम्म राजं प्रथीपत्ति रूठ्यौ । रनं रुधि गोरी समं जंग जुठ्यौ ॥ छं० ७६ रू० ६१ । हा तेज छुट्टि गोरी सुबर, दिय धीरज तत्तार । मो उपभै सुरतान को, भीर" परीइ न बार ॥ इं०रू० ६२ भावार्थ - रू० ७३ 1 गोरी चौहान से भिड़ने की इच्छा से बढ़ा। उसके साथ पाँच कोटी धनुर्धर थे । साँभर के सैनिकों के आयुधों की खनखनाहट या कोस तक जाती थी और इस (धे कोस ) के श्राधे कोस और श्रागे नगाड़े सुन पड़ते थे । ०७३ । ( १ ) मो० - जुकीयं विचारी ( २ ) ए० कृ० - पमानी ( ३ ) ना० वानं (४) कृ० ए० - अपी; नापं (५) ना०-प्रथीमों (६) नाव - सह (७) ना- उम्मै (८) ९० -भरी ।