पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३१४

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{ ७६ ) } चँवर | होति=सूर्य किरण | साई = छाया । हले = हिलते हैं । छत्र पीतं = पीले छत्र । वले <फा० ८ =अच्छा बोले । यार < फा० ) = मित्र । यार बाई= यार घाव करो | हक्के-बुलाना । पचारं < प्रचारना = ललकारना । हहक्के पचारें= उत्साह से चिल्लाना । वले डालकर । बथ्थ सं० वस्ति = कटिं । श्रवारं= अखाड़ा | उतं = उस ओर । मंग माँग, सर । उतमंग (डिं० ) <सं० उत्त- माङ्ग = शीर्ष, सिर, मस्तक, ( उत्तमँगि किरि अम्बार धोध माँग समारि कुमारमग। ८५ । वेलि क्रिसन रुकमणी री ) । तु = टूटता है । अगी बाइ बंधं सीस कटे हुए सर । भारी हर्के यहाँ कबंध, धड़ । जकी = स्तब्द ; जोर से स्तम्भित । वारी = श्राग जल रही हो । चिल्लाते हैं। कंध = कंधे, जोगमाया = योगमाया दुर्गा जो योगिनियों के साथ युद्ध भूमि में घूमने वाली कही जाती हैं ( वि० वि० प० में देखिये ) । साँग = एक प्रकार का शस्त्र [ दे० Plate No. III ] | बजी धार धारं = तलवार से तलवार बजी, (घड़बड़ा कर घुस गई ह्योर्नले) | मार मारं = मारो मारो। भैरू [<भैरव]-- शिव के एक प्रकार के गण जो उन्हीं के अवतार माने जाते हैं । पुराणानुसार जिस समय क राक्षस के साथ शिव का युद्ध हुआ था, उस समय अंधक की गदा से शिव का सिर चार टुकड़े हो गया था और उसमें से लहू की धारा बहने लगी थी । उसी धारा से पाँच भैरवों की उत्पत्ति हुई थी। तांत्रिकों के अनुसार और कुछ पुराणों के अनुसार भी भैरवों की संख्या साधारणत: आठ मानी जाती है जिनके नामों के संबंध में कुछ मतभेद है । कुछ के मत से महा भैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुरु भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव सितांग भैरव, ताम्रचूड़ और चंद्रचूड़ तथा कुछ के मत से असितांग, रुद, चंद, क्रोध, उन्मत्त, कपाल, भीषण और संहार ये आठ भैरव हैं। तांत्रिक लोग भैरवों की विशेष रूप से उपासना करते हैं। गर्दै ताल वीरंगण ताल दे रहे हैं। सुरंग = सुन्दर । अच्छरी < अप्सरा स्वर्ग की नर्तकी । इंद्र की सभा में नृत्य करने वाली देवांगना परियाँ जो समुद्र मंथन काल मैं समुद्र निकली थीं और इंद्र को मिली थीं (विष्णु पुराण -- ११६/६६ | नारद देवर्षि का नाम जो ब्रह्मा के मानस पुत्र कहे जाते हैं (वि० वि० प० में) । तीरं = समीप । बद्धं बँधकर लगकर । उबउ <सं० उपातिक > प्रा० अप उबधि ; [ या उमद्धेर <सं० श्रपवाधितक > प्रा० प० श्रधित्रौ ] | उबद्धे भानं = सूर्य अस्त होते हैं । कुंडली = कुंडलाकार । वग्गी <वर्गी सैनिक ( Growse ) | मंडली रास 1 से रास मंडल | कन्ह कृष्ण | ठानं ठाना हो । फुठी-फूटी, फूटना | माहि<सं० मध्य में । बजै गोर औरं = गोरी की