पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३१८

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( 50 ) नोट- मोतीदान छंद का लक्षण-- यह वार्णिक छंद है । इसके प्रत्येक छंद में चार जगण होते हैं । (१) ‘प्राकृत पैङ्गलम्' में मौक्तिकदान [ मोतिदान - मोतियदाम' मोतीदाम=मोतियों की माला ] छंद वर्यवृत्त के अंतर्गत माना गया है और इसका लक्षण इस प्रकार कहा गया है --- पोहर चारि पसिद्धह ताम ति तेरह मत्तह मोत्तिय दाम । पुब्वहि हारुण दिज्जइ यंत वि स ( अर्थात् चार पयोधर वाला, ल छप्पण मत्त || II, १३३ ॥ तेरह मात्रात्रों का मोतीदाम छंद होता है । प्रत्येक चरण के आदि अंत में लघु रहते हैं । १६ चरणों के इस छंद में कुल २५६ मात्रायें होती हैं । ) (२) रूप-दीप-पिंगल में इसका निम्न लक्षण दिया है --- "कली मधि च्यार जगन बनाय करो षि मन्त से षोडश पाय । बतावत शेस सुनो शुभ नांम कहावत छंद सु मोतियदाम । (३) 'भानु' जी ने अपने 'छंद: प्रभाकर' में इस छंद को चार जगण (ISI) वाला मात्र कहकर समाप्त कर दिया है । छंद रसावला बोल पुच्चै धनं । स्वामि जपे मनं । रोस लग्गे तनं । सिंह मर्द' मनं ॥ ० छोह मोहं षितं । दांन छुट्टे ननं । नाम राजं धनं । प्रम मेच्छ बाहं बिनं । रत कंध दल्ल जा ढाहनं । जीव ता बांन जा संवनं । पंषि जा सातुक्कनं ॥ छं ध | न नं । सा हनं ॥ ६० । बंधनं ! श्याम सेतं अनी । पीत रक्तं घनी ॥ छं० ६१ । वह मच्ची घरी । रोस दंती फिरी । फौज फट्टी पुनं । सूर उपभे धनं ॥ छं० ६२ । (१) ना - मंदं (२) ना० - उम्मे ।