पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(८) 1 फूल भरे = आगे आग के फूल या शोले झाड़े ( डाले ) गये । हिम = सोना | पन्नारियं = पनारियों से । जाबकं ढारियं श्रालता डाला गया । जावकं आ०, अप जावय <सं० यावकालता, लाख का रंग। श्रानंनं हंकयं =मुख चिल्लाये । अंग = शरीर | अंग जा नंचयं = कबंध नाचने लगे। सत्त सामंतयं = सात सामंतों ने शाह की प्रथम बाढ़ में इन्हीं सात सामंतों को वीर गति प्राप्त हुई थी ] | वन जाल, चटाई। चांन सा पथ्थयं = शाह के पथ को रोक सी बनकर रोका | सा= वह; सदृश । पथ्थयं = पथ, मार्ग । फौज दोऊ फटी दोनों फौजें अलग थलग हो गई। जानि जूनी टटटट्टी श्री हुई जान कर । नोट -- रसावला छंद का लक्षण - इस नाम के छंद का पता उपलब्ध छंद ग्रंथों में नहीं लगता परन्तु इसका लक्षण विमोहा छंद के सर्वथा अनुरूप है । 'विमोहा के नाम जोहा, विजोहा द्वियोधा और विजोदा भी मिलते हैं - छंद: प्रभाकर, भानु । 'विमोहा' वर्ण वृत्त है | ‘प्राकृत पैङ्गलम्' में इसका वर्णन इस प्रकार किया गया है--- अक्खरा जं छत्रा पाच पाचं ठिया । मत्त पंचा दुग्गा विरिण जोहा गरणा ।। II, ४५॥ [ अर्थात् जिसके प्रत्येक चरण में है अक्षर दस मात्रायें और दो गण (SIS ) हों | ] संभव है कि रासोकार के समय में यह विमोहा छंद 'रसावला' नाम से भी प्रख्यात रहा हो। वित्त सोलंकी माधव नरिंद्र, [षांन] बिलची मुष लग्गा । सुबर बीर रस बीर, बीर बीरा रस पग्गा ॥ दुन बुद्ध जुध तेग, दुहुँ हथन उपभारियर । तेग तुट्टि चालुक, बध्थ परि कढि कटारिय || अग अग रुक्कि ठिल्ले बलन, अधम जुद्ध रागे लरन । सारंग बंध घन वा परि, गोरी वै दिन्नौ मरन || इं० ६६० ६५। भावार्थ- रू० ६५- सोलंकी माधव राय का खिलजी खाँ से मुकाबिला पड़ा । दोनों श्रेष्ठ वीर थे ( अत: आमने सामने आते हो ) वीर रस में पग (१) 'जन' पाठ अन्य प्रतियों में नहीं है परन्तु डा० ह्योनले ने इसे दिया है। (२) ना० उभारिय (३) ए० कृ० को ० - दीनो, ना० “दिन्नौ ।