पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३३२

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( ९४ ) 1 - में हम इसका नाम कनक छ पढ़ते हैं । यह गुहिलोत वंश का था । गुहिलोत राजपूतों की एक पदवी थी जिसका प्रयोग समरसिंह और गरुत्र्या गोविंद के साथ अधिक मिलता है । रातो में आ पति और बहु नरेश नाम भी पाये जाते हैं। प्रस्तुत कवित्त में आया हुआ 'गोइंद' प्रसिद्ध गा गोविंद समझ पड़ता है और यदि यह सच है तो उसके दो संबंधी इस युद्ध में मारे गये । [ हु का अर्थ 'ऐंठना' संभव तो था परन्तु 'हुड' सामंत का पूरा विवरण मिल जाने से 'ऐंठना' अर्थ अच्छा नहीं है । 'आह'= ऐंठना--- अर्थ करके भी अनुवाद में अर्थ लिख दिया गया है परन्तु उसका विशेष मूल्य नहीं है ] । अ ( या अंचे ) <सं० श्रा+कृश खींचना । [अ < संश्रय ] | कविल पील <कुवलया पीड़ - यह कंस का हाथी था जिसे कृष्ण ने दाँत तोड़कर मार डाला था । वास्तव में यह दैत्य था परन्तु शाप यश हाथी हो गया था [वि० वि० - महाभारत, भागवत दशम स्कंध ] | दारुन दहि=दारुण कष्ट देकर । दंत = दाँत । नष्= नष्ट करना, तोड़ना । सुंड - हाथी । षंड=खंड, टूटना | मुक्यौ=छोड़ना । गिद्ध = पक्षी विशेष जो बड़ी दूर तक देख सकता है । मरे हुए पशु ही इसका श्राहार हैं। सिद्ध - जिसने योग या तप द्वारा अलौकिक लाभ या सिद्धि प्राप्त की हो । सिद्धों का निवास स्थान सुवर्लोक कहा गया है। 'वायु पुराण' के अनुसार इनकी संख्या ग्रहासी हज़ार है और ये सूर्य के उत्तर और सप्तर्षि के दक्षिण अंतरिक्ष में वास करते हैं ! ये एक कल्प भर तक के लिये अमर कहे गये हैं । कहीं कहीं सिद्धों का निवास स्थान गंधर्व किन्नर आदि के समान हिमालय पर्वत भी कहा गया है । परन्तु प्रस्तुत कवित्त में वर्णित शव भक्षी सिद्ध, कापालिक या वोर पंथी योगियों से तात्पर्य है । सिद्ध का अर्थ 'सिद्धि' भी हो सकता है। ये 'सिद्धि', खप्पर वाली योगिनियाँ हैं जो दुर्गा की परिचारिकायें कही जाती हैं तथा युद्ध भूमि में घूमने वाली मानी गई हैं। बेताल - <सं० बेताल - पुराणों के अनुसार भूतों की एक प्रकार की योनि । इस योनि के भूत साधारण भूतों के प्रधान माने जाते हैं और स्मशानों में रहते हैं । श्राह पिन पल रुक्यौ = श्राकर आँखों के पास रुक गये ( या- श्राकर उसपर अपनी दृष्टि जमाई ) कि कन यह मरे और खाने को मिले । लोह = तलवार | लहरि लहर, (यहाँ तलवारों के 'वार' से तात्पर्य है | ) लग्गत = लगने से । भुल्यौ == भूल गया था अर्थात् स्थान स्थान पर घाव लगने से भँझरी हो गया था। संम्ही सामने। सुक्रत सुकृत = सुंदर (वीरोचित ) कार्ये । सिंह हकि = सिंह सदृश हुंकारा (या गरजा ) 1 अंबर == आकाश | डुल्यौ डोल गया, काँप उठा । (