पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( १५ ) नोट- प्रस्तुत कवित्त की अंतिम दो पंक्तियों का अर्थ ह्योनले महोदय ने इस प्रकार लिखा है— "The brave warrior fell in this brave fight, reeling under the repeated strokes of the sword (of his enemy). Tartar Khan in fro t him roared like a lion over his. success, ( so loudly that ) the heavens shook." कवित्त पोलि षभ्ग नरसिंघ, पीि तुटि धर धरनि परंत, परत P. 46. पल सीसह भारि । संभरि कट्टारिय ॥ चरन अंत जरत, वीर कूरंभ तेग थाइ चुक्कत, करौ झरी भर लोह सँभारी ॥ न हय वर चल गयो न क्रमन, क्रम्म न चलै, डुल्यौ न, डुलत तिन परत वीर दाहर तनौ, चामंडां बज्जी लहर || छं० १०६ । रू० ७२ ॥ भावार्थ - रू० ७२ - नरसिंह ( के संबंधी ) ने क्रोधावेश में तलवार खींच ली और खल ( शत्रु ) के सर पर वार किया जिससे उसका धड़ कटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा परन्तु गिरते गिरते उसने (नरसिंह के संबंधी के) कटार मार दी । (कटार लगने से इस वीर के) पैर विकट वीर कूरंभ की लोथ की अंतड़ियों से उलझ गये । उसने तलवार का सहारा लेना चाहा परन्तु चूक गया और ( स्वयं अपनी तलवार से घायल जाने के कारण उसके ) लोहू की धार झर झर करके वह चली [ या - ( झरी झर= ) गिरते गिरते उसने तलवार से सहारा लेना चाहा परन्तु चूक गया और बुरी तरह घायल हो गया ] | वह एक पग भी न चल सका न वह हिला और न उसके श्रेष्ठ हाथ ही हिले । उसको गिरते देखकर दाहर का पराक्रमी पुत्र चामंड दुख से परिपूरित हो गया [ या उसके गिरने पर दाहर का वीर पुत्र चामंड युद्ध की लहर ant अर्थात् भयंकर युद्ध करने लगा ] । शब्दार्थ - रू०७२- पति पर उलझ तलवार निकालकर । नोट प्रस्तुत रू० में जिस बोर की मृत्यु का वर्णन है वह अगले रू० ८४ के आधार पर नरसिंह का संबंधी और दाहिम जाति का राजपूत था । इस रू० में चामंड- राय - पुंडीर - दाहिम का नाम, चामंदां, आाया है जिसका वर्णन पढ़कर अनुमान होता है कि वीरगति पाने वाला योद्धा अवश्य ही चामंडराय का संबंधी था । (१) ना० पिझि बज (२) ना० ना०---क्रमन क्रम्मन (४) ना० घाइ (३) मो०-न क्रमन क्रमनव नडुल्ल एन डुलतन ।