पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३४१

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है)। इस=शिव। गह्यौ कर चाइ=हाथ में चाव से पकड़ना चाहा।अथ्थि<सं॰ अर्थ=धन; [अथ्थि<सं॰ अस्थि=हड्डी-ह्योर्नले]।

रू॰ ७७—जाम<सं॰ याम (तीन घंटे के बराबर समय)=प्रहर (विकृत रूप पहर)। [नोट—सूर्योदय होने पर अर्थात् लगभग छै बजे (दूसरे दिन) युद्ध प्रारंभ हुआ था। पहले घंटे में जैत का संबंधी गिरा दूसरे में लखन प्रमार और तीसरे में राम का संबंधी]। झुकि=झुका (युद्ध के लिये)। तीर=बाण। जेय था जेम=तरह, समान, भाँति। तत्तौ=गरम या जलता हुआ। तत्तौ पर्यौ=जलता हुआ गिरा। घर=भूमि, धरती। अप्पारे=अखाड़ा करके अर्थात् युद्ध करके। जंघारौ=योगी जँवारा। जंबारा—यह रुहेल खंड के दक्षिण पूर्व के तुअर वंशी राजपूतों की एक बड़ी और लड़ाकू जाति है। भूर और तरई जँवारे इसकी दो शाखायें हैं। धप्पूधाम की अध्यक्षता में ये इस देश में आकर बसे थे। धप्पूधाम की वीरता और बदायूँ के नायक से भीषण मोर्चा लेने पर उनकी अनेक कवितायें सुनी जाती हैं। एक समय कोइल (अलीगढ़) के समीप ये बड़े शक्तिशाली थे और इनकी चार भिन्न चौरासियाँ थीं। पुंडीरों के साथ इनके बराबर के संबंध होते हैं। ये अपनी लड़कियाँ चौहानों और वड़गूजरों को देते हैं तथा भाल, जैत और गुहिलोतों की लड़कियाँ पाते हैं। [Races of N.W.Provinces of India, Elliot, Vol І, p. 141]। जंवारा जो इस युद्ध में मारा गया है, उसका मूल नाम न तो इसी रूपक में है, न अगले रू॰ ७८ में और न रू॰ ८४ में ही। जंवारा जाति के वीर पृथ्वीराज की सेना के नायक रहे हैं। भीम जंवारा जिसका वर्णन रासो सम्यौ प्रथम में है, पृथ्वीराज के साथ कन्नौज गया था और उसने लौटते समय बड़ा वीर युद्ध करके प्राण दिये थे [रासो सम्यौ ६१, छं॰ ११६, २४५०-५४]—

घरिय च्वार रवि रत्त। पंग दल बल आहट्यौ॥
तब जंघारौ भीम। घ्रंभ स्वामित तन तुट्यौ॥
सगर गौर सिर मौर। रेह रष्षिय अजमेरिय॥
उड़त हंस आकास। दिट्ठ घन अच्छरि वेरिय॥
जंधार सूर अवधूत मन। असि विभूति अंगह घसिय॥
पुच्छ यौ सुजान त्रिभुवन सकल। को सु लोक लोकैं बसिय॥छं॰ २४५४॥

नोट—रू॰ ७५—के अंतिम दो चरणों का अर्थ डॉ॰ ह्योनले के अनुसार इस प्रकार है—"Birth and death these two painful states, do not cease in meeting with thy (नतुअ<नतिअ, नाती=दौहित्र और इसीलिये संबंधी) kinsmen; this time beloved, do