पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३५२

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खाँ-पैदा-महमूद है जिसका वर्णन पिछले रु० ३६ में आ चुका है। अगले ८४ में भी इसका वर्णन है कि---

"परयौ वीर बानैत नादंत नादं ।
जिने साहि गोरी भिल्यौ साहिबादं ।।

‘वानैत’ योद्धा बिड्डर ही था जिसने शाहजादा महमूद का सामना किया था। मुक्के <मुक्के==छोड़ना। पिटृ =पीठ। फुट्टि (कि०) = फोड़ा। सु = वह'ढढ्ढर='घड़धड़ाता हुआ। ऊरध्द<सं०उर्व=ऊपर। मनो किवारी लागि =मानो दरवाज़ा बंद देखकर! पिरकी: खिड़कीं। अवसान =अंत मरण। संभारिय= सँभार करना। बारिय=उधारदा, खोलना। कट्टारी=कटर। कहि (या कढिढ़)=काढ़कर, खींचकर। अवसान =अंत, मरण। संभारिय =संँभार करना। सुमेर <सं० सुभेरु=एक पुराणोक्त पर्वत जो सोने को कहा गया है [वि० वि० १० में। परिअरि अप०) (परिकरि)< स० परिक्रमा। कुरि सुमेर परिश्ररि सुफिरि =फिर वह सुमेरु पर्वत की परिक्रमा करने चला गया। ( नोट---सुमेरु की परिक्रमा करने वाले सूर्य कहे गये हैं। लोहाना की सुमेरु व्ही परिक्रमा करने चला गया अर्थात् तोहाना सूर्यलोक में स्थान पा गया। चवसट्टि <सं० चतुष्पष्टि-चौंसठ। परे=मारे गये। तीन राइ इक राज परि=(१) एक राजा और तीन राव गिरे (२) एक और तीन अर्थात् तेरह राव राजे गिरे। नोट---इस दूसरे अर्थ में एक और तीन का अर्थ तेरह करने की रहस्य यह है कि अगले रू० ८४ में इस युद्ध में धराशायी होने वाले तेरह सामंत मात्र का स्पष्ट उल्लेख है और यहाँ इस रूप में केवल एक और तीन अर्थात् चार ही होते हैं। यह विषमता मिटाने के लिये एक और तीन अर्थात् तेरह की कल्पना कर ली गई है। अब रहा पहला अर्थ, वह भी ठीक है;(पृथ्वीराज के जितने वीर काम आये इनमें) तीन राव इक राज परि (=एक राजा और तीन राव थे)----इस प्रकार प्रथम अर्थ की पुष्टि भी हो जाती है।

नोट (१)---"इस तरफ अजानबाहू लोहान अजब ही मजा कर रहा था । वह जिस लंबे चौड़े काबुली बीर के सीने में कटर मार के वारा पार कर देता तो ऐसा मालूम होता था कि सानों किसी दृढ़ दुर्ग का द्वार खोल दिया गया हो।' रास-सार, पृष्ठ १०२।

यहाँ आजानवाहु, लंबे-चौड़े-काबुली वीर, कटार और दृढ़-दुर्ग शब्द ध्यान देने योग्य हैं। 'महमुद'[का महसुंद’ (मह= बड़ा + सुंद<सुइ=हाथ) अर्थात् बड़े हाथ] पाठ करके 'आजानवाहु’ की उत्पत्ति हुई है। लंबे-चौड़े-