पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३५४

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वाहिनी [ दुर्गा ] अपने अनेक मुखों से हुंकारी हो । [ युद्ध छिड़ गया ] एकै और दो तेजस्वी श्रेष्ठ मीर थे और दूसरी ओर सिंहवाहिनी ( की उपमा पाने वाले या सिंहवाह राजपूत का) का एक सर था [अर्थात् दुसरी और अकेला विदुर था]। [आखिरकार बिड्डर का] शिरत्राण टूट कर बिखर गया और चंद को उससे उपमा मिली। उसके सर के दो टुकड़े करता हुआ भाला वैसे ही लगा मानों पर्वत श्रृंग पर बिजली गिरी हो, परन्तु उस ( सिर की शोभा नष्ट नहीं हुई, सिर दो टुकड़े होकर भी ऐसा शोभायमान रहा मानों तेजस्वी उड्डुगण नृप (अर्थात् चंद्रमा) हो।

शब्दार्थ--- रु०८३- मनि लोह = लोह ( तलवार ) मान के अर्थात् अपनी तलवार चलाने की कुशलता पर विश्वास करके। मारूफ = तातार मारूफ खाँ । बिड्डर = सिंघवाह नाम की एक राजपूत जाति कही जाती है परन्तु अब उसका कहीं पता नहीं लगता। संभव है कि विदुर सिंधवाह राज- पूत था, तभी चंद का कथन है कि सिंधवाह (= सिंह पर चढ़ने वाला) विड्डर उसी प्रकार गरजा जैसे सिंहवाहिनो हुंकारती हैं। एक और दो मीर थे और दूसरी ओर सिंहवाही [अर्थात् सिंघवाह राजपूत या सिंहवाहिनी दुर्गा की उपमा पाने वाले] का एक सर था - अर्थात् विड्डर अकेला था। चंद ने 'सिंहवाह' शब्द के अर्थ का चमत्कार प्रस्तुत रूपक में दिखा दिया है । गाहक्के < हिं॰ गहकना = लपकना ( बड़े चाव से )। पंचानन = सिंह [ नोट- सिंह को पंचानन कहने के दो कारण कहे जाते हैं। कुछ लोग 'पंच' शब्द का अर्थ 'विस्तृत' करके पंचानन का अर्थ 'चौड़े मुख वाला' करते हैं, और कुछ लोग चारों पंजों को जोड़कर पाँचवाँ मुँह गिना देते हैं ]।वाहि= वाहिनी । पंचानन वाहि= सिंहवाहिनी ( दुर्गा ) [ वि० वि० प० में ] ( उ०--- 'रूप रस एवी महादेवी देव देवन की सिंहासन बैठी सोहैं सिंहबाहिनी ।' देव )। सद्द <स० शब्द । सद्<सद् <स० शत= सौ। सिर सद्= सौ सिर (अर्थात् अनेक सर )। --हहक्के=हहकना, गरजना, हुंकारना बरकरी= बरक गया । टोप टुट्टि बरकरी टोप टूटकर बिखर गया । हेत< सं० हेति = भाला। तुटि= टूटना। शब्द। बीय = दोनों । श्रंग< सं० शृङ्ग = पर्वत की चोटी । बिज्जुलह= बिजली। भाम= शोभा। न=नहीं। हति= [हतना (= नष्ट करना) के भूत कालिक कृदंत का स्त्री लिंग रूप है,] नष्ट हुई। भाम न हति = शोभा नष्ट नहीं हुई। उत= उधर। मंग = माँग ( यहाँ सिर से तात्पर्य है ) । उतमंग= सस्तक। सुहै- शोभायमान हुआ। विव= दो। टूक हो= टुकड़े होकर। उडगन नृप = चंद्रमा। तेजमति = (तेजम + अति ) अति तेजस्वी । इस कवित्त की अंतिम पंक्ति के अंतिम चरण