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का कुछ विद्वान् अर्थ करते हैं कि—मानों चंद्रमा टुकड़े-टुकड़े हो गया हो। कवित्त में आये हुए 'वीय' और 'विव' का संबंध 'बिंब' से जोड़कर ह्योर्नले महोदय 'गोल' अर्थ करते हैं जो संभव होने पर भी आवश्यक नहीं प्रतीत होता।

नोट—ह्योर्नले महोदय ने प्रस्तुत कवित्त के अंतिम दो चरणों का अर्थ इस प्रकार किया है—

"It was as if the sword had descended on his head like lightening on a mountain peak, yet its beauty was not destroyed; but his round head, having been broken into pieces, appearad like a multitude of stars; such a glorious lord was he," p. 45.

नीचे नीट नं॰ ३२७ में अपने लिखा है—"But I confess, the meaning of the whole verse is not quite clear to me"

छंद भुजंगी

परे षांन चौहट्ठि गोरी नरिंदं।
परे सुभ्र[१] तेरह कहै नाम चंदं॥
परे लुथ्थि लुथ्थिी जु सेना अलुज्झै।
लिषे कंक अंकं बिना कौंन बुज्झै॥छं॰ ११९॥
पर्यौ गोर जैतं मधिं सेस ढारी।
जिनं राषियं रेह अजमेर सारी॥
पर्यौ कनक आहुट्ठ गोविंद बंधं।
जिनें मेछकी पारसं सब्ब षद्धं॥छं॰ १२०॥
पर्यौ प्रथ्थ बीरं रघुव्वंश राई।
जिनें संधि षंधार गोरी गिराई॥
पर्यौ जैत बंधं सु पावार भानं।
जिनें भेजियं मीर बांनेति बानं॥छं॰ १२१॥
पर्यौ जोध संग्रांम सो हंक मोरी।
जिनें कड्ढियं बैरगो दंत गोरी॥
पर्यौ दाहिमौ देव नरसिंह अंसी।
जिनैं साहि गोरी गिल्यौ[२] षांन गंसी॥छं॰ १२२॥
पर्यौ बीर बांनेत नादंत नादं।
जिनें साहि गोरी मिल्यौ[३] साहिजादं॥


  1. ना॰–सुभर
  2. ए॰–मिल्यौ।
  3. ना॰; हा॰–गिल्यौ।