पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३५६

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पर्यौ जावलौ जल्ह ते सेंन भष्षं।
हुए सार मुष्षं निसंकंत[१] नष्षं॥छं॰ १२३॥
पर्यौ पल्हनं बंध माल्हंन राजी।
जिनें अग्ग गोरी क्रमं सन्त भाजी॥
पर्यौ बीर चहुआंन सारंग सोरं।
बजे दोइ देंहज आकास तोरं॥छं॰ १२४॥
पर्यौ राव भट्ठी बरं पंच पंचं।
जिनें मुक्ति के पंथ चल्लाइ संचं॥
पर्यौ भांन पुंडीर ते सोम कामं।
जिनें जुंझते बज्जयो पंच जाभं[२]॥छं॰ १२५॥
पर्यौ राउ परसंग लहु बंध भाई।
तिनं मुक्ति अंसं छिन मद्धि[३]पाई॥
पर्यौ साहि गोरी भिरै चाहुआनं।
कुसादे कुसादे चबै मुष्ष पांनं॥छं॰ १२६। रू॰ ८४॥

भावार्थ—रू॰ ८४—गोरी के चौंसठ खान मारे गये। और नरेन्द्र (पृथ्वीराज) के तेरह श्रेष्ठ वीर खेत रहे। चंद (कवि) उनके नाम कहते हैं क्योंकि जो लोथों में उलझे हुए पड़े हैं उनके जातिगत और व्यक्तिगत नाम लिखे बिना उन्हें कैसे पहिचाना जा सकता हैं। छं॰ ११९।

(१) अजमेर की लाज बचाने वाला जैत गौर (गरुआ) (लाशों के) अवशेषों के बीच में गिरा। (२) गोविन्द का संबंधी कनक आहुट्ठ गिरा जिसने म्लेक्षों की सब [अधिकांश] सेना को नष्ट कर डाला था। छं॰ १२०।

(३) रघुवंशियों का राजा, वीर प्रथा गिरा जिसने कंधार में घुसकर गोरी को पराजय दी थी। (४) प्रमार वंश का सूर्य जैत का संबंधी [लखन] गिरा जिसने प्रसिद्ध धनुर्द्धर मीर को एक बाण से (स्वर्ग) भेज दिया था। छं॰ १२१ ।

(५) संग्राम स्थल में हुंकारने वाला योद्धा [जंधारा जोगी] गिरा जिसने अपनी तपस्या के बल से गोरी का दाँत खींच लिया था। (६) नरसिंह देव का अंशी (साझीदार) दाहिम गिरा जिसने गोरी के खानों को बाणों की नोक से निगल लिया था (अर्थात् वाणों से मार डाला था)। छं॰ १२२।

(७) हुंकारने और नाद करने वाला वीर बानैत (धनुर्द्धर) गिरा जिसने


  1. ना॰—निकस्संत; मो॰—तिसक्कंत।
  2. ना॰—झिले जुम्झयं बज्जयौ पंच जंमं; ए॰—जिने जुझ्झतें बज्जयो पंच जंमं।
  3. हा॰—संझ।