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शाह ग़ोरी के शाहज़ादे [खाँ पैदा महनूद] का सामना किया था। (८) उनकी सेना को भक्षण करने वाला जाबल वंशी जल्द गिरा जिसने (गोरी के) घोड़-सवारों के सरदार को निश्शंक होकर नष्ट कर डाला था। ई० १२३।

(९) पल्हन का संबंधी राजा माल्हन गिरा जिसके सामने से गोरी के सात थोद्धा एक के बाद एक भाग खड़े हुए थे। (१०) सारंग ( सोलंकी) का संबंधी [माधव] जो चौहान के साथ रहने लगा था शोर करता हुआ गिरा; जिस समय उसने आकाश तोड़ा (स्वर्ग में प्रवेश किया) उस समय दो बजे थे। छं० १२४।

(११) पाँच श्रेष्ठ वीरों को पंचत्व में मिला, उन्हें मुक्ति के मार्ग पर चला कर सुख पाने वाला राव भट्ठी भी गिरा (१२) चंद्रलोक की इच्छा करने बाला पुंडीर वंशी भान गिरा, जिसे युद्ध करते करते पाँच याम बीत गये थे। छं० १२५।

(१३) प्रसंग राव का लघु वघुं [ विड्डर ] गिरा और उसने क्षण भर में ही मुक्ति का अंश पा लिया [ अर्थात् यह क्षण भर में ही मुक्त हो गया ]। चौहान (की सेना) से भिड़ कर ग़ोरी के इतने ख़ान मारे गये कि मुंह प्रसन्नता से उनका वर्णन कर सकता है । छं० १२६।

शब्दार्थ-रू० ८४--सुन्ने<सुभर< सुभट=श्रेष्ठ वीर, [सुभ्र=< सं० शुभ्र= श्वेत-ह्योर्नले ]। नरिंद<नरेन्द्र ( पृथ्वीराज के लिए प्रयुक्त हुआ है ) । तेरह (प्रा०) <० तेरस<सं० त्रयोदश-=(हिं०) तेरह । लुथि्थ लुथ्थी= लोर्थों में । अलुज्झै == उलझे हुए। कंक अंक= भाग और चिन्ह अर्थात् उनके जातीय और व्यक्तिगत नाम । बुज्झै=बूझना, जानना । मधि=मध्ध में । सेस=अवशेष (लोथो का) । ढारी<(ढारना)=गिरा। जिनं=जिसने । राषियं = रखीं । रेह=धूल । जिने राषिर्य देह अजमेर सारी= जिसने अजमेर की सारी मिट्टी रखी अर्थात् जिसने अजमेर की लाज रस्त्र । गोर=इस जाति के राजपूतों का मुख्य स्थान अजमेर पाया जाता है। सारे प्राचीन इतिहास में हम 'अजमेर के गोर” लिखा पाते हैं जिससे विश्वास हो जाता है कि चौहानों के बाद देश का शासन सूत्र इन्हीं के हाथ में छाया । पृथ्वीराज की लड़ाइयों में गोरों का नाम ख्यातनामा योद्धाओं की भाँति लिया गया है। मध्य भारत में इनका एक छोटा राज्य था जो सात सौ वर्षों की मुसलमानी अमलदारी में अपना अस्तित्व बनाये रहा । सन् १८०६ ई० में सिंधिया ने गोरों की राजधानी सुपूर पर अधिकार करके उन्हें नष्ट भ्रष्ट कर डाला"।[Rajasthan, Tod.Vol, I, p. 116 and Vol. II, p. 449] । अजमेर के गोर पृथ्वीराज