पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३६५

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(--- चार या आठ कोस की दूरी) । उड़ि=उड़कर अर्थात् दौड़ कर। [संग फेरी=साथ साथ फिरना---और इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ होगा, मीर आधे योजन इधर और आधे योजन उधर शीघ्रता पूर्वक साथ-साथ (या पंक्ति बद्ध ) बढ़े हैं] । संगी=साँक या साँग<सं० शंकु-चौड़े फल वाला भाला, [दे० Plate No, III]। [नोट-ग़ोरी का विचार अपनी सेना की भुजायें शीघ्रता पूर्वक बढ़ाकर और पृथ्वीराज की थोड़ी सी सेना को घेरकर प्रथम तो युद्ध प्रारंभ करने का था और फिर चक्र चलाने वालों को पीछे करके पराक्रमी पाँच सौ शे द्वारा आक्रमण करवा के राजपूतों को बाँध लेने, मार डालने या अत्म समर्पण करना लेने का था । पृथ्वीराज के सामंत एक प्रकार का चौकौर व्यूह बाँधे लड़ रहे थे—ह्योनले । रोस<सं० रो=क्रोध । चक्रअस्त्र विशेष जो फेंक कर मारा जाता था, । [दे० Plate No. III]। अवन<लाव=बहना, निकलना । चक्र श्रवन चक्र चलाने वाले । चौडोल<चोड़ोल=चौ पंक्ति, चार पंक्ति ) ( ह्योर्नले महोदय ने चौडौल को अर्थ पीछे की सेना' न जाने क्यों विचार कर किया है)। अग्ग ( (प्रां०)<सं० अग्न--आगे। सेखन-शेखों को । शेख, पैगंबर मुहम्मद के वंशज मुसलमानों की उपाधि है। मुसलमानों के चार वर्गों में ये श्रेष्ठ कहे गये हैं। शोरी की सेना के लड़ाकू सैनिकों में ये अग्रगण्य थे। पंचाशत से ०>प्रा० पंचासा ( जिसकी पंचासौ होना संभव है )>हिं० पचास; [ या पंचा सौ = पंचxसौ ( शत )= पाँच सौ ] । कोट= दुर्ग ( यहाँ व्यूह' से तात्पर्य है । सामंतों ने दृढ़ व्यूह बना लिया) । जोट = जुटना [ (१) इकट्ठा होना (२) युद्ध करना ] । सार (तं०)=मूल, तत्व । [ कोट है जोट= जुट कर कट बना लिया । जोट सार= जुटने अर्थात् युद्ध करने का सार (तत्व) ]। मरन=सरना ही; मृत्यु । हुल्लासौ=हुलसना अर्थात् प्रसन्न होना । नोट---[युद्ध में मृत्यु होना क्षत्रिय बीर बड़े सौभाग्य की बात मानते थे क्योंकि इस मृत्यु द्वार। संसार के आवागमन से छूटने में उनका विश्वास था। युद्ध काल में यह विचार कर कि अब मृत्यु होगी वे प्रसन्न होते थे। चंद वरदाई ने तत्कातीन क्षत्रिय वृत्ति का अच्छा परिचय दिया है । युद्धारित क्षत्रिय के लिये सुखांत है इसीसे चंद प्रस्तुत कवित्त में उसे बर (श्रेष्ठ) अगनि (अग्नि) कहते हैं।]। बगी (> हिं० क्रिया बगना)<सं० बक-घूमनी, फिरना । बर अगनि बगी=श्रेष्ठ अनि (युद्ध की) फैल रही थीं या धधक रही थी। हल्यौ नहीं नहीं हिले. (अपने स्थान से) । पद्धर < सं० पधारणा =रोक ! पद्धर कोट= रोकने वाला मोर्चा लेने वाला)+कोट (=व्यूह) । सुजोट अ=भली भाँति जुट गया (अर्थात् दृढ़ हो गया)। रास (सं०)= प्राचीन काल की एक क्रीड़ा,