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जिसमें मंडल बाँध कर नाचा जाता था। परिय=पड़ा। समरह परिये = समर भूमि में होने लगा। नोट---[यहाँ चंद ने इस युद्ध को रास कहकर बड़ी ही सांमविक उपमा दी है। सामंत गणों की गोरी की सेना चारों ओर से घेर रही थी और यह युद्ध एक प्रकार से रास हो था। सार धीर-धैर्थ का सार (तन्त्र)। नोट--[यहाँ 'सार धीर’ भी ‘बर' की भाँति कोट’ का विशेषण हैं। सामंतों का कोट स्वयं धैर्य का समूह बन गया]। सार धीर बर कोट हुआ= सामंतों का व्यूह धैर्य का सार बन गया--अर्थात् अति धैर्यवान सामंत खूब वीरता पूर्वक लड़ने लगे और उनके शरीरों द्वारा निर्मित वह 'सार धीर कौट' टूटना कठिन हो गया है।

नोट-कवित्त के प्रथम तीसरे चरण का अर्थ ह्योनले महोदय यह लिखते "Those skilled in the use of the chakra-weapon (he placed) in the rear , in the front five hundred Shekhs." p. 60.

परन्तु विचारणीय बात है कि चक्र अस्त्र है और बाणों की भाँति फेंक कर चलाया जाता है। जिस तरह तत्कालीन युद्ध में सब से आगे धनुर्द्धर रहते थे उसी प्रकार चक्र चलाने वाले भी रहते होंगे । आगे अन्य सैनिकों को कर के पीछे चक्र वालों को करने का स्पष्ट अर्थ है आगे बालों के चक्र बालों से मरवाना और ऐसी मूर्खता कोई सेनापति नहीं कर सकता है।

ह्योनले महोदय की इस भूल का कारण चौडोल का ग़लत अर्थ करना हैं। चौंडोल को वे चंडोल करके उसका संबंध सं० चंडावल (चंड + अवलि) से कर सेना के पीछे का भाग अर्थात् हरावत का उलटा' अर्थ लग गये हैं। परन्तु चौडोल या चौड़ोल देशज शब्द है जिसका एक अर्थ चौ पंक्ति में होता है और चौडोल इसी अर्थ में प्रस्तुत रूपक में प्रयुक्त हुआ है।

(२) कुहक बाण---"एक तीन हाथ लंबे बांस के टुकड़े में पंदे की तरफ एक चमड़े का थैला ताँत से कसा जाता है। इस थैले की लंबाई एक फुट से लेकर डेढ़ फुट तक और गोलाकार मुंह की चौड़ाई दो से तीन इंच तक होती हैं। इसमें करीब एक सैर बारूद धाँस धाँस कर भरी जाती है और ऊपर से ताँबे, लोहे, सीसे और काँच के छोटे-छोटे टुकड़े भरकर मुंह बंद कर दिया जाता है और बाँस की नली के भीतर से एक बारूद को भगा धागा आर पार लग रहता है। बाँस के दूसरे सिरे पर एक झेडी रहती है। बारूद के धागे मैं आप देने से थैली की बारूद अनार दाने की तरह शब्द' करके लौ