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कंध धड़ रहित हो गये। उनके (हाथियों के) पक्ष ज़ख्मों से फट गये; तीरों से उनकी सूँडें घायल हो गई और मेघ व सदृश आयुध चलने लगे । द्वितीया के सुन्दर चन्द्रमा की तरह टेढ़ी तलवारें निकल आई और शरीर झांधे आधे होने लगे तथा (आत्मा) दूसरे बंधन (शरीर) ग्रहण करने लगी है। सिर कीर्ति वखानने लगे। या, कटे हुए सिर विजय विजय चिल्लाये ।। (सवार के भरने पर) अश्व उसे ढूँढ़ने लगे? ( स्थान स्थान पर पड़े हुए मनुष्यों में) रंभा अपने लिए वर खोजने लगीं । छं० १३१-३३ ।।

स्थान-स्थान पर तलवारों से कटे हुए नर (योद्धा) पड़े थे, उनका भ्रम पूर्ण वास समाप्त हो गया था। (अर्थात् वे वीर गति प्राप्त होने के कारण मुक्त हो गये थे) । छं० १३४ ।।

(यह दृश्य देखकर) शाह गोरी ने हाथ में नंगी तलवार लो ( या अपने हाथ में (स्थान से) तलवार निकाली। छं० १३५ ।

शब्दार्थ---रू० ८७--मेलि=मिले या भिड़े ! भरं <भट = वीर। जुरं= जुड़ना (यहाँ युद्ध करनों से तात्पर्य है)। मंत= मत। जा जं=जिसको जैसा। भरं = वीर। मंत जा जं भर भयावान विचारे यस्य भटस्थ अशीत तावत तेन कृतम्। करं-यह करि (= हाथी के स्थान पर प्रयुक्त हुआ जान पड़ता है। उप्पम उप्परं-इसके ऊपर उपसा देने के लिए। कंद = विना रेशे की गूदेदार जड़ जैसे मूली गाजर, शकरकंद इत्यादि । भील-भील एक पहाड़ी जंगली जाति है। ये राजपूताना के आदिम निवासी थे। पृथ्वीराज की लड़ाइयों में बहुधा इनका वर्णन आता है । भील<सं० भिल्ल-एक जंगली जाति । भीलों का वि० वि० देखिये---Hindu Tribes and castes. Sherring. Vol. II, pp. 328-29, 21-300। कंध नं नं धर= कंधे धड़े रहित हो गये अर्थात् शरीर बुरी भाँति घावों से भर गया यो, कंधों से धड़ पृथक हो गया ( सिर कट गया )। नोट:--रास के अन्तर्गत युद्ध काल के वर्णन के साथ इस पद का प्रयोग बहुलता से मिलता है) । 'पंष< सं० पक्ष । अषं<फा० s) = घाव। फिर=फिर ( था फिर” अथवा “फर’, ‘फट” (=फटना) के स्थान पर लिखा गया भी संभव है जैसे भट' के लिए चंद ने भर लिखा है। तीर= बाण ( कुछ प्रतियों में तौर’ पाठ भी मिलता है परन्तु वह अशुद्ध है)। नंबै करे नष्ट करना या घायल करना, चोट पहुँचाना । मेघ=वर्षा । आबधं<सं० आयुध । सं झर-झरना, गिरना । चंद<सं० चंद्र। बीजं<वीयं <द्वि= दो। चंद बीजं बरं =द्वितीया कु सुन्दर चंद्रमा:। अध्द अद्ध धर शरीर अधेि