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सुकना। बजि=बजकर। झंकारयं=झंकार की ध्वनि। झंपि=झँपना, बंद होना। झुकं बजि झंकारयं झंपि उट्ठे=युद्ध में (अस्त्र शस्त्र परस्पर) बजकर झंकार उठते हैं, बंद होते हैं और झनझना उठते हैं। लाह=लोह (तलवार या आयुध)। लोह पञ्चं=पाँच आयुध (तलवार, ढाल, भाला, कटार, बाण)। इनके नामों के विषय में मतभेद है। तलवार, ढाल, धनुष, डंडा और भाला—ये पाँच आयुध Spence Hardy's Manual of Buddhism. p. 290 में मिलते हैं। बधं=बध करना। पञ्च छुट्टै=पंचत्व [पृथ्वी, जल, वायु, आकाश] छूट जाते हैं अर्थात् अलग हो जाते हैं। या 'पंच छुट्टै' का अर्थ 'आत्मा का पंचत्य (शरीर) से छूट जाना' भी संभव है। उज्झै—उझल या उछल कर। देवसांई=देवताओं के स्वामी=इन्द्र। उतकंठ<सं॰ उत्कंठा। घनं घोर=घन घोर (युद्ध में)। लगै झागरै=झगड़ने लगना। हंस शिव (ह्योर्नले)। हज्जार= (सं॰ सहस्राक्ष) इन्द्र का एक नाम। इन्होंने गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या से ऋषि का छद्म वेश रखकर पापाचार किया था। गौतम ने यह जान कर शाप दिया कि रे योनि प्रेमी अधम, तेरे शरीर में एक सहस्त्र योनि सदृश छिद्र हो जावें। तभी इन्द्र का नाम 'सयोनि' पड़ा। कुछ समय पश्चात् उन्हीं ऋषि की कृपा से ये योखिों के रूप में बदल दी गई और तब इन्द्र का नाम सहस्राक्ष पड़ा, (वि॰ वि॰ पुराणों और महाभारत में देखिये)। बरद्दाइ=वरदाई (१—वीर, २—वरदानी)। रिज्झैं=रीझते हैं। दीन्न भेरी=भेरी बजाने लगते हैं। भेरी=बड़ा नगाड़ा, ढोल, दुन्दुभी। करेरी> हि॰ करौली<सं॰ करवाली=एक प्रकार की छोटी तलवार, कटार।

कवित्त

पच्छैं भो संग्राम,अग्ग अपछर विच्चारिय।
पुछै रंभ मेंनिका, अज्ज चित्तं किम भारिया॥
तब उत्तर दिय फेरि, अज्ज पहुनाई आइय।
रथ्य बैठि औथान, सोझ तह कंत न पाइय॥
भर सुभर परे भारथ्थ भिरि, ठांम ठांम चुप जीति सधि[१]
उथकीय पंथ हल्लै चल्यौ, सुथिर संभौ द्वेषीय नथि[२]॥छं॰ १४४।रू॰ ९०।

भावार्थ—रू॰ ९०—संग्राम पीछे हुआ इससे आगे (पूर्व) अप्सराओं

ने विचार किया [अर्थात् अगले दिन युद्ध छिड़ने के पूर्व अप्सराओं में कुछ


  1. ना॰—संथ
  2. ना॰—तथ; ए॰ कृ॰ को॰—नथ।