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कवित्त

तब साहिब गोरी नरिंद, सत्त बानं जु समाही[१]
पहल[२] बान बर बीर, हुने रघुवंस गुरांई[३]
दूजै बांत तकंत[४], भीम भट्ठी बर भंजिय।
चहुआंन तिय वांन, षांन अर्द्ध घर रंज्जिय॥
चहुआंन कमांन सुसंधि करि, तीय बांन हथह थहरिय[५]
तब लग्गि चंपि प्रथिराज नें, गोरी वै गुज्जर गहिय॥ छं॰ १४७। रू॰ ९३।

भावार्थ—रू॰ ९३—तब साहब शाह ग़ोरी ने सात बाण स्थिर किये [या सात बास्य धनुष पर चढ़ाये]। पहले बाण से उसने श्रेष्ठ वीर रघुवंश गुराई को मार डाला, दूसरे बाण से उसने निशाना लगाकर श्रेष्ठ भीम भट्टी को मारा और ख़ान (गोरी) ने तीसरे बाण से चौहान के शरीर का मध्य भाग घायल किया। चौहान ने (भी) धनुष सँभालकर तीन बाण हाथ में लिये। (परन्तु) जब पृथ्वीराज यह करने में लगे थे तो गुज्जर ने ग़ोरी को पकड़ लिया।

शब्दार्थ—रू॰ ९३—तत्त वानं=सात बाण। समाही<सं॰ समाहित=समाविस्थ, स्थिरीकृत, (उ—भुज समाहित दिग्वसना कृतः'—रघुवंश)। सत्त बानं जु समाही=सात बाण स्थिर किये अर्थात् सात बाण धनुष पर चढ़ाये। पहल बान=पहला बास। हने=मार डाला। 'गुराई', गोराज का विकृत रूप है। (गोराज या गोविन्द=गायों का स्वामी)। रघुवंस गुरांई=गुराई, रघुवंशी राजपूत विदित होता है। इस प्रकार अभी तक तीन रघुवंशी योद्धा मारे गये—(१) प्रथा (रू॰ ८४), (२) भीम (रू॰ ८९); (३) गुराई (रू॰ ९३)। दूजै बांन तर्कत=दूसरे वाण से ताककर अर्थात् निशाना लगाकर। भंजिय=नष्ट किया। तिथ वांन=तीन बाण। पांन=यह शाह ग़ोरी के लिये आया है। ग़ोरी के लिये अभी तक सहाब, शाह आादि पदवियों का प्रयोग होता रहा है, परन्तु यहाँ पर ख़ान का प्रयोग क्यों हुआ यह विचारात्मक है। संभव है कि

सुलतान ग़ोरी की प्रतिज्ञानुसार कि यदि आज दिन पलटने तक शत्रु को भलीभाँति पराजित न कर दूँगा मैं सुलतान या शाह न कहलाऊँगा (रू॰ ९२), चंद बरदाई ने उसके लिये 'षांन' का प्रयोग किया हो। चहुआंन=पृथ्वीराज (परन्तु यह भी संभावना है कि यह चौहान वंशी कोई अन्य युद्ध हो)। अर्द्ध


  1. ना॰—सतवान समाहिय
  2. ना॰—पहिल
  3. ना॰—गुसाँइय
  4. ना॰—दूजै वान्त कंठ
  5. ना॰—तीय वान हथ हथ रहिय।