पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३८१

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धर<अर्द्ध धड़=आधे धड़ में या शरीर के मध्य भाग में। [नोट— 'घर' की जगह 'घर' पाठ भी मिलता है; और 'घट' (=शरीर) से 'घर' होना उसी प्रकार संभव है जिस प्रकार रासो में 'भट' से 'भर' होना]। 'रंजिय' को यहाँ रंजन से संबंधित न कर यदि फारसी 'रंज' (दुख, कष्ट) से निकला मान लिया जाय तो कोई हानि नहीं दीखती और अर्थ भी अच्छा हो जाता है। रंजिय<फा॰ =कष्ट। अर्द्ध घर रंजिया=आधे घड़ को कष्ट दिया अर्थात् शरीर का मध्य भाग बायल किया। कमान मुसंधि करि= धनुष सम्हाल कर। सुसंधि=भली भाँति संधानना; (संधान=निशाना लगाना) अतएव 'कमान सुसंधि करि' का अर्थ 'धनुष संधानना' नहीं वरन् "धनुष सम्हालना होगा', क्योंकि बाग संधाना जाता है, धनुष नहीं। थहरिय<ठहरिय। हथह थहरिय=हाथ में ठहराये या लिये। हथह=हाथ में। लग्गि=लगे हुए। चपि=दवना। लगिंग चंप=लगे दबे थे अर्थात् व्यस्त थे। गहिय=पकड़ा। गुज्जर=यह संभवत: पृथ्वीराज का वही सामंत है जिसका वर्णन प्रस्तुत रासो-समय के रू॰ २७ और २८ में आ चुका है। 'वह वह कहि रघुवंस राम हक्कारि स उठ्यौ' तथा गुज्जर गांवांर राज लै मंत न होई' के आधार पर उसका नाम 'राम रघुवंशी गूजर (गुर्जर)' होना चाहिये।

नोट—"राजपूत वीरों की विकट मार के मारे जब यवन सेना पस्त हिम्मत हो उठी तो कुछ सामंतों ने मिलकर शहाबुद्दीन पर आक्रमण किया और उसे घेर कर पकड़ना चाहा। यह देखकर शाह ने एक वान से रघुबंस राम गुसाई को मारा और दूसरे से भीम भट्टी को घायल किया तीसरा वाण जब तक चढ़ता था कि पृथ्वीराज ने आकर उसके गले में कमान डाल दी।" रासो-सार, पृष्ठ १०३।

कवित्त

गहि गोरी सुरतान, षान हुस्सेन उपाध्याय।
षां ततार निसुरत्ति, साहि झोरी कारि डार्यौ॥
चामर छत्र रषत्त, वषत लुट्टे सुलतानी।
जै जै जै चहुआन, बजी रन जुग जुग बानी॥
गजि बंधि बंधि सुरतांन कों, गय ढिल्ली ढिल्ली नृपति।
नर नाग देव अस्तुति करैं, दिपति दीप दिवलोक पति॥ छं॰ १४८।
रू॰ ९४।