पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४०२

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( १६४ ) पाया जाता है । "लहानूर, 'लोहनगर' का विकृत रूप है क्योंकि 'नगर' का दक्षिणी रूप 'नूर' है जैसे कलानूर, कनानूर आदि" ( Thornton ) । रूनी ने इसका विशुद्ध नाम लोहचवर लिखा है। लोहचवर का अर्थ है लोह (या व ) का किला (Cunningham)। j वाल्मीकीय रामायण के अनुसार राम के पुत्र 'लव' ने 'लाहौर' बसाया और 'कुश' ने 'कसुर' । राजतरंगिणी में 'लाहौर' महाराज ललितादित्य के साम्राज्य का नगर बतलाया गया है । 'देशविभाग' में लिखा है कि द्वापर के अन्त में लाहौर के राजा वनमल के साथ भीमसेन का युद्ध हुआ था । उत्तर सीमांत के गीतिकाव्यों में लाहौर का जंगल उदीनगर, स्यालकोट के योद्धा सालवाहन के पुत्र रत्सलू और एक राक्षस का युद्ध क्षेत्र कहा जाता है मेवाड़ राज्य की ख्यातों में लिखा है कि यदि पूर्वज सूर्यवंशी कनकसेन लाहौर छोड़कर दूसरी शताब्दी में मेवाड़ में बसे थे । अन्हलवाड़ा पहन के सोलंकी और जैसलमेर के भट्टी राजपूतों का आदि स्थान लाहौर ही पाया जाता है। लाहौर में याज भी एक भाटी दरवाज़ा है। इन सब बातों से तथा अनेक अन्य प्रमाणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि लाहौर बसाने वाले राजपूत थे और यह पश्चिमी भारत के आदि राजपूत राज्य की राजधानी था । "पहली और दूसरी शताब्दी के मध्यकाल में कभी लाहौर नगर की नींव पड़ी होगी" (Geography of Ptolemy)। सातवीं सदी के द्वितीयार्द्ध में लाहौर, अजमेर वंश के चौहान राजा के श्राधीन था । सन् १०२२ ई० में महमूद ग़ज़नवी ने दूसरी बार लाहौर पर आक्रमण करके नगर लुटवाकर अपने राज्य में मिला लिया और इसका नाम महनूदनगर रखा । बारहवें ग़ज़नवी सुलतान ख़ुसरो ने ग़ज़नी छोड़कर तार को अपनी राजधानी बनाया; परन्तु सन् १९८३ ई० में गोर वंश ने ग़ज़नवी वंश की समाप्ति करके उक्त वंश का राज्य अधिकृत कर लिया । अलाउद्दीन के पुत्र सेफउद्दीन के उत्तराधिकारी सुलतान गयासुद्दीन के भाई शहाबुद्दीन ग़ोर ने नराई ( तराई ) के मैदान में अजमेर के राजा पिथौरा से युद्ध किया परन्तु हार गया ( Minhaj-us-seraj) । उसकी सेना ४० मील तक खदेड़ी गई और ग़ोरी अचेत अवस्था में लाहौर लाया गया (Sullivan)। आर्य वीरता के प्रतिनिधि इस पराक्रमी हिन्दू सम्राट [पृथ्वीराज चौहान तृतीय ] ने लाहौर दुर्ग के फाटकों पर सात बार टक्करें भारी ( Sullivan ) परन्तु अन्त में सन् १९६२-६३ ई० में गोरी द्वारा मरवाया गया [ Tabaqat- i-Nasiri; Firishta, Lahore, Latif. p. 13 ] । पृथ्वीराज रासो