पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४०५

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३- पौराणिक प्रसंग तारक [<तारकासुर]- एक असुर था । यह असुर तार का पुत्र था। जब इसने एक हज़ार वर्ष तक घोर तप किया और कुछ फल न हुआ, तब इसके मस्तक से एक बहुत प्रचंड तेज निकला जिससे देवता लोग व्याकुल होने लगे, यहाँ तक कि इन्द्र सिंहासन से खिंचने लगे । देवताओं की प्रार्थना पर ब्रह्मा तारक के समीप वर देने के लिये उपस्थित हुए। तारकासुर ने ब्रह्मा से दो वर माँगे । पहला तो यह कि "मेरे समान संसार में कोई बलवान न हो" दूसरा यह कि "यदि मैं मारा जाऊँ तो उसी के हाथ से जो शिव से उत्पन्न हो ।" ये वर पाकर तारकासुर घोर अन्याय करने लगा । इस पर देवता मिलकर ब्रह्मा के पास गये । त्रह्मा ने कहा - " शिव के 1 पुत्र के अतिरिक्त तारक को और कोई नहीं मार सकता। इस समय हिमालय पर पार्वती शिव के लिये तप कर रही हैं। जाकर ऐसा उपाय रचो कि शिव के साथ उनका संयोग हो जाय ।" देवताओं की प्रेरणा से कामदेव ने जाकर शिव के चित्त को चंचल किया । अन्त में शिव के साथ पार्वती का विवाह हो गया । जब बहुत दिनों तक शिव के पार्वती से कोई पुत्र नहीं हुआ तब देवताओं ने घवरा कर अग्नि को शिव के पास भेजा । कपोत के वेश में को देखकर शिव ने कहा- "तुम्ही हमारे वीर्य को धारण करो," और वीर्य को यग्नि के ऊपर डाल दिया । उसी बीर्य से कार्तिकेय उत्पन्न हुए जिन्हें देवताओं ने अपना सेनापति बनाया । घोर युद्ध के उपरांत कार्तिकेय के कारण से तारकासुर मारा गया । [वि० वि० मत्स्य पुराण, शिव पुराण और कुमार, संभव (कालिदास) में देखिये ] । नारद-- वेदों में ऋग्वेद मंडल ८ और ६ के कुछ मंत्रों के कर्ता एक नारद का नाम मिलता है जो कहीं कब और कहीं कश्यप वंशी लिखे गये हैं ।