पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४१२

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(८) रासों में पृथ्वीराज के सामंत 'लंगा लंगरी राय चौहान' को हनुमान् का इष्ट था। संकर [<सं० शंकर = अभिवृद्धि कर्त्ता, शुभ ] - शिव का एक नाम जो कल्याण करने वाले माने जाते हैं। शिव हिन्दुओं के एक प्रसिद्ध देवता हैं जो सृष्टि का संहार करने और पौरा एक त्रिमूर्ति के अंतिम देवता कहे गये हैं । वैदिक काल में ये ही रुद्र के रूप में पूजे जाते थे, पर पौराणिक काल में शंकर, महादेव और शिव यादि नामों से प्रसिद्ध हुए । पुराणानुसार इनका रूप इस प्रकार है-सिर पर गंगा, माथे पर चंद्रमा तथा एक और तीसरा नेत्र, गले में साँप तथा नर मुंड की माला, सारे शरीर में भस्म, व्याघ्र चर्म ओढ़े हुए और बायें अंग में अपनी स्त्री पार्वती को लिए हुए । इनके पुत्र गणेश तथा कार्तिकेय, गण भूत और प्रेत, प्रधान त्रिशूल और वाहन बैल है जो नंदी कहलाता है। इनके धनुष का नाम पिनाक है जिसे धारण करने के कारण ये पिनाकी कहे जाते हैं। इनके पास पाशुपत नामक एक प्रसिद्ध ग्रस्त्र था जो इन्होंने अर्जुन को उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दे दिया था। पुराणों में इनके संबंध में बहुत सी कथायें हैं। ये कामदेव का दहन करने वाले और दक्ष का यज्ञ नष्ट करने वाले माने जाते हैं । समुद्र मंथन के समय जो चित्र निकला था उसके पान करने वाले ये ही थे | वह व इन्होंने अपने गले में ही रक्खा और नीचे पेट में नहीं उतारा, इसीलिए इनका गला नीला हो गया और ये नीaas कहलाने लगे । परशुराम ने अस्त्र-विद्या की शिक्षा इन्हीं से पाई थी । संगीत और नृत्य के भी ये प्रधान आचार्य और परम तपस्वी तथा योगी माने जाते हैं । इनके नाम से एक पुराण भी है जो शिव पुराण कहलाता इनके उपासक शैव कहलाते हैं। इनका निवास स्थान कैलाश माना जाता है और लोक में इनके लिंग का पूजन होता है। [वि० वि० शिवपुराण में देखिए 1 पृथ्वीराज रासो में अन्य स्तुतियों के साथ चंद ने भगवान शंकर की भी कई छंदों में स्तुति की है-' नमस्कार संकर करिय सरस बुद्धि कवि चंद | 3 सति लंपट लंपट नवी, अबुधि मंत्र सिसु इंद ॥ अर्थात् — जिनकी कृपा से बुद्ध सरसित होती है उन शंकर को मैं नमस्कार करता हूँ । जिनमें ( दक्ष पुत्री ) सती आसक्त हैं परन्तु जो