पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४८

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दिन में सब वस्तुयें दिखाई पड़ती हैं परन्तु ये वस्त्र इतने महीन हैं। कि दिन में भी इनके तार नहीं दिखाई देते । वस्त्र की सूक्ष्मता उद्यमान हैं जिसके प्रतिपादन हेतु दिवस न सुझहि तार का प्रयोग करके भेदेप्यभेद: द्वारा बड़ी ख़बी से रूयकातिशयोक्ति सिद्ध की गई है। अप्रस्तुत के सर्वथा अभाव वर्णन वाले असभ अलंकार का एक छन्द देखिये :

रूपं नहि कटाच्छ कूल तय, भायं तरंगं बरं ।
हावं भावति मीन सित गुनं, सिर्छ भने भेजनी ।।
सोवं जोश तरंग रूवति बरं, झीलोक्य ना तो समा ।
सौर्य साहि सहावदीन ग्रहियं, अनंग क्रीड़ा रसं ।।

‘त्रीलोक्य ना तो समा’ द्वारा असम अलंकार और इसके अतिरिक्त सांय रूपक का मिश्रण भी समझ लेना चाहिये।

ऊपमान को उपभैय कल्पना करना आदि कई प्रकार की विपरीत वाला प्रतीपालंकार रासो में अनेक स्थलों पर देखा जाता है । उस (संदरी) की वेणी ने सप को जीत लिया, मुख ते चन्द्र-ज्योत्स्ना फीकी कर दी, नेत्रों ने कमल की पंखुड़ियों को हीन क्रिया, कलशाकार कुचों ने नारंगियों को क्षीण किया, मध्य भाग ने केहरि कटि को, गति ने हंसों (की चाल) को, थौवन-मद नै गलित गजराज को, जंघाओं नेउलट कर रखे हुए कदलिखंभों को, कंठ ने कोकिल को, (शरीर के) व ने चंपक पुष्प को, दाँतों (की वृति) ने बिजली को और नासिका ने शुक (की नाक) को श्री हीन कर दिया । इस प्रकार कामराज ने (भान) भूमंडल की

विजय हेतु अपना सैन्य सुजित किया।
बैनि नाग तुझ्यौ । वदन ससि राका तुझ्यौ ॥
नैन पदम पंचुरिय। कुंभ कुच नारिंग छुट्यौ ।।
मद्धि भाग थिराज । हँस गति सारँग मत्ती ।।
जंघ रंभ विपरीत । कैट कोकिल रस मत्ती ।।
ग्रहि लियौ साज चंपक दरन । दसन बीज तुज नास बर ।।
सेना समग्र एकत कृरिंय | काम राज जीतन सुधर ।।

इनके अतिरिक्त उदाहरणे, दृष्टांत, आवृत्ति, दीपक, संदेह, सार, स्वभावौक्ति और अर्थान्तरन्यास के भी सुन्दर निरूपण मिलते हैं। वैसे रास:-

(१) अथिराज' के स्थान घर बनराजघाठ उचित होगा ।