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नाम दिया गया है, इस परिस्थिति को देखकर अनुमान होता है कि छन्दों का नामकरण किसी ने बाद में किया है। इन छन्दों के वास्तविक रूप की विवेचना और उनका वर्गीकरण एक समस्या रही है। पिङ्गल छन्दः सूत्रम्', गाथालक्षणम्', वृत्तजातिसमुच्चय', 'श्री स्वयम्भूःछन्दः, कविदर्पणम्', “प्राक्कत पैङ्गलम्', छन्दकोशः, वृत्तरत्नाकर', 'छन्दार्णव पिङ्गल', 'छन्दः प्रभाकर प्रभृति संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिंदी के छन्द ग्रंथों की सहायता से हमने अपनी पुस्तके चंदवरदाई और उनका काव्य' में इनके रूप और लक्षणो का निश्चय किया है।

इस महाकाव्य में ( मात्रा-वृक्ष-शाहा, अर्या, दूहा, पद्धरी, अरिल्ल, हनुफाल, चौपाई, बाघा, विष्षरी, मुरिल्ल, काव्य, वेली मुरिल्ल, रासा, रौला, अर्द्धमालची, मालती, दुमिला, ऊध, उधौर, चन्द्राथना, गीता मालती, सोरठा, करघा, माधुर्य, निसांसी, वेली; म, दंडमाली, कमंध, दुर्गम, लीलावती, त्रिभङ्गी और फारक या पारक । संयु-वृत्तबथुआ, कवित्त, कबित्त विधान जाति, वस्तु बैध रूपक, तारक और कंडलियः । वर्ण-वृत्त---- साटक, दंडक, भुजंगप्रयात, भुजंग, वेली भुजंग, मोतीदास, बिराज, श्लोक, त्रोटक, लघुत्रोटक, विज्जुमाला, भलथा, रसावला, नाराच, नाराचा, वृद्ध नाराचे, अर्द्ध नाच, लघु नाच, चावर नाराच, युक्त, वृद्धअमरावती, कलाकल या मधुराकल, कंठशोभा, कंठाभूपन, पारस, मोदक, मालिनी, मुकंद डामर और दोधक) ये अड़सठ प्रकार के छन्द पाये जाते हैं जिनकी संख्या ग्रंथ का श्राकार देखते हुए अनुचित नहीं है ।

इस काव्य का 'कबित' नामधारी छप्पय छन्द इतना प्रसिद्ध हुआ। कि वह रासो-पद्धति की एक अमिंट अङ्ग प्रसिद्ध हो गया है हिंदी में नरहरि और नाभादास के छप्पय विख्यात हुए और वीर-प्रशस्विकारों में शार्ङ्गधर (हमीर रासो ), मान ( राज विलास ), भूषण ( शिवराज भूषण ), श्रीधर ( जंगनामा ), सुदन ( सुजान चरित्र }, जोधराज ( हम्मीर रालो ), पद्माकर ( हिम्मतबहादुर विरुदावली ) और चंद्रशेखर वाजपेयी ( हम्भीर हठ ) के अतिरिक्त मानसकार भक्त तुलसी, ‘सुकविन के सरदार’ गंग और प्रकृति वर्णनकार’ सेनापति ने भी रासो की शब्दावली वाली छप्पय पद्धति का अनुः करण किया । इस सफलता को गौरव नि:संदेह चंद की प्रतिभा को ही है।

। रासो के बहुधा बदलने वाले छन्द उसके कथानक की गति में बाधा नहीं डालते, यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। वे अपना रूप बदलते