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रहते हैं परन्तु न तो रस का क्रम ही भंग होने पाता है और न वनक्रम को ही प्राधात पहुँचता है अस्तु हमें साहस के साथ कह सकते हैं कि कवि ने अपने छन्दों का चुनाव बड़ी दूरदर्शिता से किया है । कथा के मोड़ों को भली प्रकार पहिचान र वर्ण और मात्रा की अद्भुत योजना करने वाला रासो का रचयिता वास्तव में छन्दों का सम्राट था ।

चरित्र-चित्रण

चरित्र-चित्रण दो प्रकार का होता है--(१) आदर्श और (२) यथार्थ अपनी भावना के अनुसार कवि का किसी चरित्र को पूर्ण रूप देना तथा उसमें किसी प्रकार की त्रुटि न पड़ने देना ‘आदर्श चित्रण है और संसार में नित्य-प्रति देखे जाने वाले चरित्रों का यथातथ्य रूप खींचना यथार्थ चित्रण है । आदर्श-चरित्र के दो प्रकार हैं-एक तो जातीय, राष्ट्रीय, सामाजिक और धार्मिक विचारों का अधिक से अधिक पूर्ण रूप से समन्वय करने वाला ‘लोकादर्श चरित्र' जैसे रामचरितमानस के राम का और दूसरा उक्त ढंग के समन्वय या लौकिक औचित्य की भावना को गौण करके कोई एक भाव पराकाष्ठा तक पहुँचाने वाला ऐकान्त्रिक आदर्श चरित्र' जैसे पद्मावत के राजा रतनसेन का जो अपनी विवाहिता पत्नी नागमती को छोड़ कर जोगी' हो जाता है और सिंहलगढ़ में जाकर सेंध लगाता है । ऐकान्तिक श्रादर्श चरित्र' धर्म और अधर्म (पाप) दोनों के आदर्श हो सकते हैं जैसे भूर्तिमान अत्याचारी रविण पाप क आदर्श है । थे कभी स्वतन्त्र रूप में विकसित पाये जाते हैं जैसे रतनसेन और कभी लौकादर्श नायक का महत्व बढ़ाने के लिये उदभूत होदे हैं जैसे लोकनायक राम को महत्व बढ़ाने वाले सीता, भरत और हनुमान क्रमशः पातिव्रत, भातृ-भक्ति और सेवा भाव के ऐक्रान्तिक आदर्श हैं। 'यथार्थ चरित्र चित्रण' का ऐकान्तिक या प्रधान स्थान पा सकना संभव नहीं है परन्तु गौण रूप में उसकी श्रावश्यकता अनिवार्य कही जड़े सकती है।

'पृथ्वीराज रासो' के नायक पृथ्वीराज को क्षत्रिय लोकदर्श रूप मैं चित्रित किया गया है । अजमेर-नरेश महाबाहु-सौमेश्वर के अपूर्व तप और पुण्य से जगद्विजयी पृथ्वीराज को जन्म हुआ ।' जिस दिन उनका जन्म हुआ। उसी दिन पृथ्वी का भार उतर गया। उनके जन्म

१---सोमेश्वर महावाहो । तस्थापूर्वं तपो गुणैः ।।

| तेने पुण्यं जगज्जेता । भन्ते पृथुराख्यम् ।। ॐ० ६६६, स० १; ३---ॐ दिन अनम प्रथिराज भौ।त दिन भार घर उत्तरिय छः ६८८, स ०१;