पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४४)


गैरी के भाई मीर हुसेन के शरणागत होने पर उसे 'आश्रय दिया जिसके कारण सुलतान से अजन्म बैर बँधा और कठिन युद्धों के मोर्चे रोकने पड़े, गुर्जरेश्वर भीमदेव चालुक्य के अनान्दार से पीड़ित अबूराज सलख प्रभार को शरण देकर उसकी रक्षा कर उसकी कन्या इच्छिनी से विवाह स्वीकार करके चालुक्यराज से वीर क्षत्रिय योद्धा के समान बैर का निर्वाह किया, समुद्र शिखरगढ़ की राजकुमारी की “ज्यों रुकमिनि कन्हर बरिय' याचना पर उसके पिता की स्वीकृति पर भी उसका हरण किया और युद्ध में विजय प्राप्त करके उससे परिणय किया, अपनी बहिन पृथा का विवाह चित्तौड़ के रावल समरसिंह ( सामन्त सिंह ) से करके एक सबल शासक-वंश को अपनी चिर मैत्री के प्रगाढ़ बंधन में बाँधः, नाना प्रकार के आधिदैविक उपद्रव का शांत करके खई बन की भूमि के गर्भ की अगाध धन-राशि का अधिकार पाया, देवगिरि की यादवकुमारी शशिवृता की, प्रणय-शरण-याचना पर महान युद्ध क्लेश सहन कर, देवालय से उसका हरण करके उससे विवाह किया और फिर यादवराज पर कान्यकुब्जेश्वर जयचन्द्र के युद्ध-क्रुद्धालु होने पर उसकी रक्षा की, उज्जैन-नरेश भीमदेव के अपनी. कन्या इन्द्रावती का पहिले विवाह-प्रस्ताव करके उसका उल्लंघन करने पर उससे शुद्ध करके राजकुमारी का वरण किया, रणथम्भौर के राजा मान की (आर्त) पुकार पर युद्ध में चंदेरीपति शिशुपाल वंशी पंचाइन से उसका त्राण किया, एक चन्द्र-ग्रहण के अवसर पर रात्रि में यमुना स्नान करने वाले पिता और उनके साथियों को वरुण के वीरों द्वारा मूर्छित किये जाने पर स्तुति और गन्धर्व-यंत्र को जप करके चैतन्य किया, पिता के निधन पर सिंहासन ग्रहण किया, पितृ-घाती भीमदेव चालुक्य को मारने तक पगड़ी न बाँधने और घी न खाने का व्रत लिया फिर पिता का प्रेत-संस्कार समाप्त करते ही ललकार कर चालुक्य-नरेश पर चुढाई की तथा घमासान युद्ध में उसे मौत के घाट लगाकर अपना बदला पूरा किया, जिसूर्य-यज्ञ में द्वारपाल का कार्य अस्वीकार करने पर जयचन्द्र द्वार सुवर्ण-मूर्ति के रूप में उक्त स्थान पर खड़े किये जाने के अपमान के कारण उनके भाई बालुकाराय को युद्ध में मारकर यज्ञ विध्वंस किया, अन्त:पुर में रहने वाली अपनी प्रेयसी कर्नाटकी वेश्या से रमण करने के अपराध में मंत्री कैमास को मारा, युद्ध को ही श्रपना जीवन-शिविर ' बनाये रहने पर भी पंडितों के शास्त्रार्थ और मंत्र-तंत्र की होड़ देखने का अवसर ढूढ़कर अपनी सुसंस्कृत और परिष्कृत रुचि का परिचय दिया, 'मुरया के परम व्यसनी इस थीद्धा ने वहुधा उसमें विपक्षियों के', षड़यंत्रों से युद्ध