पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/५६

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प्रथीराज सुन सुनत । क्रयन कपटय तें खुल्लय ।। प्रथीराज गुन सुनत । हरष्टि गंगौ सिर डुल्लय ।। रासौ रसात नवरस सरस । जानौ जानप लहै ।।

निसटौ शरिट साहस करें । सुनौ सत्ति सरसुति है ॥ २४०, स० ६८


यही कारण है कि इस क्षत्रिय लोकादर्श नायक के चरित्र का । अनुकरण करने का उपदेश कवि ने पृथ्वीपालों को दिया है.में मधज्ज ( जयचन्द्र ) को जीतने वाले, शाह शौरी को पकड़ कर अपने चंदी-राह में डालने वाले, मेवात और सोझत के दुर्गों को तोड़ने वाले, भीमदेव को थट्टा में परास्त करके गुर्जर-देश को पददलित करने वाले, कुलधन्य नृपति ( पृथ्वीराज्ञ ) ने आश्चर्यजनक कृत्य किये हैं, वैसा न तो किसी ने किया और न झागे ही कोई करेगा, जगत को जीतकर ( या जगत में विजयी होकर ) उन्होंने युगों तक चलने वाला यश प्राप्त किया है । समस्त भूपाल यह बात समझ लें कि जैसा पिथ्थल ( पृथ्वीराज ) ने किया वैसा ही उन्हें भी करना चाहिये :

उन जित्यौ कभधज्ञ । साहि बंध्यौ हि गोरी ।। मैवाती मठ किद्ध । दौरि सो झत्तिय तोरी ।। थट्टभंज्यौ भीम । धरा गुज्जर दिसि धायौ ।। इहै करी अघियात ! कलस कुल नृपति चढायौ ।।

कीयौ न कि हू' करिहै न को ! जरा जितै जुग जस लियौ ।। संभलौ सकल भूपति बयन । कीजै ज्यौं पिथ्थल कियौ ।। ५५८, स० ६७


सुयोग्य मंत्री कैमास दाहिम का सामान्य अपराध पर वध, चंद पंडीर द्वारा युवराज रैनसी और धामंडराय के षड़यंत्र की अनर्गल ब्वच चलाकर कान भरने तथा मदांध गज ऋङ्कारहार को मारने मात्र की भूल पर उकसाने के फलस्वरूप सेनापति ( चामंडराय ) को बेड़ी पहनने का दंड और गौरी से अंतिम युद्ध से पूर्व 'रतिवंतौ जिम्’ द्वारा राज्य-कार्य में शिथिलता यथार्थ चित्रण हैं तथा इनके औचित्य-अनौचिल्थ पर मीमांसा करने के लिये यथेष्ट अंतरंग प्रमाण हैं ।

चाचा कन्ह ,चौहान, मंत्री कैमास दाहिम, जैतराव प्रभार, सेनापति चामंडराय, क्षत्रप चंद पुंडीर, संजमराय, लोहान अजानुबाहु, लंगर तंगरी राय, अल्हन कुमार, निड्डुर राय, धीर पुंडीर, पावस पंडीर, अक्षताईं चौहान अभूति एक सौ छै दुर्द्धर्ष हुतात्मा सामंत, स्वामि-धर्म में रंगे