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उपर्युक्त धर्म और पाथ के सारे ऐकान्तिक-आदर्श-चरित्र अपने आचरणों से इस महाकाव्य के नायक पृथ्वीराज के लोकादर्श-चरित्र की महत्ता बढ़ाने वाले हैं। इस काव्य में थही इनकी स्थिति हैं और यही इनकी विशेषता है।

पृथ्वीराज के लोकादर्श चरित्र-चित्रण का ही यह प्रभाव है कि ( उनके ) रासो को सुनकर देवराज इन्द्र, ब्रह्मा, विष्णु और महेशा रीझ गये, उमा ने शिव भाव से उसका ग्रहण किया तथा गुणझ देवर्षि नारद ने उसका श्रवण किया। तत्व का सार, ज्ञान, दान तथा मान सभी उसमें मन का रंजन करने वाले हैं। वह अस्त्र-शस्त्रों के संचालन की कलाओं का ज्ञान कराने वाला और शत्रु-दल का नाश कर्ता है। सब रसों के विचार, लोक की विद्यायें तथा मंत्र-तंत्र की साधनायें उसमें वर्णित हैं । कबि चंद ने युक्ति पूर्वक उसे छन्दों में बाँधा है जिसका पठन और मनन करने से सद्बुद्धि प्राप्त होती है :

सुनिरास सुरराय । रिक्रूझ ब्रह्मा हरि संकर ।। उमया धरि हरि साव । सुनिय नारद्द गुनकर ।। जें कछु तच गुर बयान ! दान माननि मुन रंजन ॥ सस्त्र कला । साधंन । मानि अरियन दल भजन ।। सब रस विचार विद्या भश्रम । मंत्र जंत्र साधन सुतन् ।।

कवि चंद छंद बंधिय जुगति । पढ्त गुनत पावै सुमति ।। ३४१,८०६८


साँचा:'''जीवन से सम्बन्ध'''

पृथ्वीराज रासो' क्षत्रिय शासक पृथ्वीराज के जीवन-चरित्र का दिग्दर्शन कराने के कारण भारतीय हिन्दू समाज के क्षत्रिय जीवन और उसके सम्पर्क में आने वाले अन्य सामाजिक अंगों के जीवन से अधिक सम्बन्धित है। थुगीन घटना-चक्रों के प्रवाह में अपने पात्रों को ढालते हुए कवि ने परंपरा से संचित भारत के धर्म-अधर्म, सत्यासत्य, हिंसर-अहिंसा, दान-कृपणता, दया-क्ररवा, पातिव्रत-स्वैरता आदि के विश्वास को दृढ़तर करते हुए समाज को आदर्श रूप देने की सफल चेष्टा की है।

चिर-पोषित मानवीय मनोवृत्ति अतिथि-सत्कार और शरणागत को अभयदान हिन्दुश्चों में विशेष निष्ठितु भाये गये हैं। इस भावना की रक्षा मात्र ही नहीं वरन् उसकी पूरी प्रतिष्ठा कवि ने शहाबुद्दीन ग़ोरी द्वारा देशनिर्वासित उसके भाई हुसेन ख़ाँ के पृथ्वीराज से आश्रय-याचना के अवसर