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हमीर ऐहिक सुखों की तृष्णा के लोभ में पृथ्वीराज का पक्ष अंतिम युद्ध में निर्बल पाकर ग़ोरी के साथ ही लेते हैं । रासो में धर्मायन और हमीर सदृश कृतनियों की चर्चा स्वामि-धर्म का अादर्श पालन करने वाले सहस्त्रों यौद्धाओं के साथ लोलुपों का यथार्थ चित्र है । युद्ध में विजय प्राप्त होने के उपरांत ग़ोरी द्वारा हमीर को प्राणदंड वास्तव में उसकी पृथ्वीराज के प्रति कृतघ्नता का ईश्वरीय दंड है जो हिन्दू समाज के चिर चरित व्यवहार और दृढ़ विश्वास के अनुरूप हुआ है ।

मातृ-पितृ भक्त भारत-भूमि के निवासी अपवाद रूप में ही मातृ और पितृ वाली पाये गये हैं । रामायण में माता-पिता की आज्ञा के फलस्वरूप ही राम चौदह वर्षों के लिये वनवासी होते हैं। महाभारत में यक्ष के प्रश्न का युधिष्ठिर द्वारा उत्तर कि माता पृथ्वी से भारी है और पिता आकाश से ऊँचा है, सर्व विदित है । इसीसे तो पिता और उसकी भूमि के प्रति अबाध सम्बन्ध घोषित कर अपभ्रश का कोई कवि ग उठा थी कि पुत्र के जन्म से क्या लाभ हुयी और उसकी मृत्यु से कौन सी हानि हो गई जिसके बाप की भूमि पर दूसरे का अधिकार हो गया :

पुते जाएँ कवयु गुण अवगुणु कवण मुण' ।।

जा बप्पी की भु हड़ी चम्पिज्ज्इ अवरेण ।। सिद्धहेम०


पृथ्वीराज-रासो' में पितृ-वत्सल पृथ्वीराज अपने पिता सोमेश्वर के परम आज्ञापालक दिखाये गये हैं। एक चन्द्रग्रहण के काल में वरण के वीरों द्वारा उनके मूच्छित किये जाने पर पृथ्वीराज ने यमुना की स्तुति और गंधर्व-मंत्र का जप करके उन्हें चैतन्य किया था ।

वरुन दोष भेट्यौ सुप्रथु । ग्रेह संपते आय ।।

देषि पराक्रम सोम नृप । फुल्यौ अंग म माय ।।५५, स० ४८


भीमदेव चालुक्य द्वारा युद्ध में उनके वध का समाचार पाकर पृथ्वीराज ने कहा कि उसके जीवन को धिक्कार है जिसने अपने पिता का बैर ने चुकाया :

विग ताहि ताहि जीवन प्रमान । सध्यौ न तात बैरह बिनाने ।।


और भीमदेव को मारने तक ‘धृत मुकि पाग वंधन तजिय' ( अर्थात् घृत सेवन छौर पगड़ी बाँधना छोड़ दिया ) । अजमेर में राज्याभिषेक का कार्य समाप्त करके भीमदेव पर चढ़ाई हुई और युद्ध में उसे मारकर ‘काढि बैर अनभंग' पृथ्वीराज दिल्ली लौड़ यायें । इस प्रकार कवि ने पितु-भक्ति