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चौदहवीं शती के, कविराज विश्वनाथ ने पूर्ववतीं आचार्यों द्वारा दिये गये लक्षणों को ध्यान में रखते हुये महाकाव्य के निम्न लक्षण अपने साहित्य दर्पण में दिये जिनकी सर्व मान्यता विदित है:

सर्गबन्धों महाकाव्यम् तत्रैको नायकः सुरः।
सद्वंशः क्षत्रियों वापि धीरोदात्तगुणान्वितः॥१
एक वंशभवा भूपा: कुलजा वहवोऽपि वा।
शृङ्गार वीरशान्तानामेकोङ्गी रस इष्यते॥२
अङ्गानि सर्वेतिरसाः सर्वे नाटक सन्धयः।
इतिहासोद्‌भयं वृत्तम् अन्यद्वा सज्जनाश्रयम्॥३
चत्वारस्तस्य वर्गाः स्युस्तेष्वेकं च फलं भवेत्।।
आदौ नमस्क्रियाशीर्वा वस्तुनिर्देश एव वा॥४
क्वाचिन्निन्दा खलादीनां सतां च गुणकीर्तनम्।
एक वृत्तमयैः पद्यैरवसानेऽन्यवृत्तकैः॥५
नातिस्वल्पा नातिदीर्घाः सर्गा अष्टाधिकाइह।
नाना वृत्तमयः क्वापि सर्गः कश्चन दृश्यते॥६
सर्गान्ते भावि सर्गस्य कथायाः सूचनं भवेत्।
सन्ध्यासूर्येन्दुरजनीप्रदोषध्वान्तवासराः॥७
प्रातर्मध्याह्नमृगयाशैलर्तुवन सागराः।
सम्भोग विप्रलम्भौ च मुनि स्वर्ग पुराध्वराः॥८
रणप्रयाणोपयममन्त्रपुत्रोदयादयः।
वर्णनीया यथायोगं साङ्गोपाङ्गा अमी इह॥९
कवेर्वृत्तस्य वा नाम्ना नायकस्येतरस्य वा।
नामास्य सर्गोपादेयकथया सर्वनाम तु॥१०

अर्थात्‌—

(१) महाकाव्य में सर्गों का निबन्धन होता है।

(२) इसका नायक देवता या धीरोदात्त गुणों से समन्वित कोई सद्‌वंशी क्षत्रिय होता है। एक वंश के सत्कुलीन अनेक राजा भी नायक हो सकते हैं।

(३) शृङ्गार, वीर और शान्त में से कोई एक रस अंगी होता है तथा अन्य रस गौण होते हैं।

(४) नाटक की सब सन्धियाँ रहती हैं। ('सन्धियों के अङ्ग यहाँ यथासम्भव रखने चाहिये।' टीकाकार)

(५) कथा ऐतिहासिक या लोक में प्रसिद्ध सज्जन सम्बन्धिनी होती है।