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‘बंस अनल बहुआन’१, वज्रग बाहु अरि दल मलन’२, शत्र-शास्त्र पारंगत३, ‘अतार अजित दानव मनुस’४, ‘सत्रु त्रिनु रद गहि छडै'५, जिनके कारण 'अरि बरन धरनि घर चैनं नहिं'६, 'दिल्लीबै चहुआन महाभर'७, ‘आधेट दुष्ट दुज्जन दलन'८, ‘ध्रुझ समान संभरि धनिय’९, कामिनि पूजत मार' १०, कलि काज किति बेली अमर' ११ करने वाले, 'सुरतन गहन सोधन करन' १२,

लज्जा रूप गुयोन नैषध सुतो । वाचा च धर्मो सुतं ।।
बाने पार्थिव भूपति समुदिता । मानेषु दुर्योधनं ।।
तेजे सूर समं ससी अमि गुन । सन विक्रम विक्रमं ।।
इन्द्रो दान सुशोभन सुरतरू । कामी रमावल्लभं ।। १३

'ना समान चहुआन कौ' १४, 'मंजेब जग्य जैचंद नृप' १५, 'भीम चालुक अहि साहिय’ १६, ‘दल चल धरै न आस' १७, 'पैज कनवज्ञ सपूरिय’ १८, 'सिंगिनि सरवर इच्छिविन सत्त हनन घारेयार' १९ पृथ्वीराज चौहान तृतीय इस काव्य के धीरोदात्त नायक हैं, जिनके सहायक हैं मनसा वाचा कर्मणा से स्वाभि-धर्म के परम अनुयायी शूर सामंत और विषम प्रतिद्वंदी हैं गुर्जरेश्वर, कान्यकुब्जेश्वर और ज़लाधिति ।

(३) युद्ध के शाश्वत व्रती महाराज पृथ्वीराज के जीवन का आद्योपान्त वर्णन करने वाले ६९ समय के इस काव्य में इक्कीस समय २० छोड़कर ( जिनमें चढ़ाई के उपरान्त बिना युद्ध के सन्धि का वर्णन करने वाले समय ११ और ३० भी सम्मिलित हैं ) शेष अङ्गतालिस समय रण-साज-सज्जा और संग्राम में अस्त्र-शस्त्रों के प्रहार तथा वीरों के हाँकों से ओत-प्रोत हैं इससे सहज


पृ० रा०, (१) छं० १८६, स० ७ (२) छं० ६२, स० १ (३) छं० ७२६-४६, सं० १ (४) छं० ५५, १० ३ (५) छं० १२८, स० ६ (६) छं० १८६, स० ७ (७) छं० ७६, स० २५ (८) छं० १५८, स० २६ (६) छं० १७४, स० ३१ (१०) छं० १६६, स० ३६ (११) छं० १३४, स० ३७ (१२) छं० १५१, ०३६ (१३) छं० ८५, स० ४५ (१४) छं० १७, स० ४७ (१५) छं० २७३, स० ४८ (१६) छं० ३४, स० ५० (१७) छं० ६५१, स० ६१ (१८) छं० २, स० ६२ (१६) छं० ३६६, स० ६७; (२०) स० १, २, ३, ६, ११, १६, १७, १८, २१, २२, २३, ३०, ४२, ४६, ४७, ५७, ५६, ६०, ६२, ६३ और ६५;