पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५९)

ही अनुमान किया जा सकता है कि इस काव्य में वीर रस की प्रधानता है। अपनी अनुभूति के कारण कवि ने इन युद्धों का साङ्गोपाङ्ग वर्णन बड़ी कुशलता से किया है और यह उत्कृष्ट भावाभिव्यंजन का ही फल हैं कि ये स्थल अपने रस में बहा ले जाने की क्षमता रखते हैं। युद्ध में जीवनआहुति के विषम कष्टों और शोकाकुल परिणामों के स्थान पर मिलते हैं। वीरगति पाने पर उच्च लोक के सौख्य-समृद्धि पूरा निवास और चिर-यौवना अप्सराश्नों के साथ विलास तथा आततायी शत्रु-दर्स चूर्ण करके विजयोल्लास यौर ऐहिक सुखों की प्राप्ति जो नायक के रस में मान कर देते हैं।

अपने काव्य में 'राजनीति नवं रसं' और 'रासौ असंभ नव रस सरस’ का दावा करने वाले रासोकार ने सुचिर मैत्री वाले उत्साह क्रोध नामक भावों को ही स्थान दिया है जिनमें बहुधा जुगुप्सा और बदा-कदा भय का मिश्रण देखा जाता है। इनके उपरान्त रूप की राशि अनेक राजकुमारियों का सौन्दर्य चित्रित करने के अतिरिक्त, उनकी कामनूर्ति पृथ्वीराज से विवाह करने की साध और उसमें विध्न तथा अन्त में वांछित प्राप्ति के वर्णन ने रति-भाई की व्यंजना को सद; मानव-चिंच द्वीभूत करने की शक्ति से सम्पन्न होने पर भी उसे विशेष लुभावने वल से समन्वित कर दिया है। शेष भाव आंशिक रूप से उपस्थित होते हुए भी गौण हैं।

(४) पृथ्वीराज के किंचितु पूर्ववर्ती अचार्य हेमचन्द्र ने महाकाव्य में सन्धियों का निरूपण किया जाना ग्रावश्यक ठहराया था परन्तु ऐतिहासिक वृत्त लेने के कारण कवि ईद को रासो में यथेच्छा परिवर्तन करने और काव्याङ्गों के अनुकुल कथा को चुमार देने की स्वाधीनता न थी। रासो वर्णित पृथ्वीराज की मृत्यु का ढंग भले ही प्रमाणों के अभाव में इतिहासकारों द्वारा मनोनीत न हो और भले ही स्वदेश र हिन्दू जाति की रक्षा में अपनी आहुति देने वाले चौहान सम्राट के कीर्तिकार ने उस पर कुछ रंग चढ़ाया हो चुरन्तु शोक में अवसान होने वाली अपनी कृति को नैतिक, आध्यात्मिक और आंशिक लौकिक विजय प्रदान करके अपने कार्य-नायक की कीर्ति-गाथा ही उसने प्रकारान्तर से गान करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है।

पृथ्वीराज का यशोगान ही इस काव्य का उद्देश्य था, चाहे वह मित्रभवि के नाते रहा हो, चाहे जीविका के कारण स्वामि-बर्स की पूर्ति हेत रहा हो अथवा चाहें जनता द्वारा समादृत लोक-कल्याण के कारण प्रसिद्धि को प्राप्त प्रजावत्सल शासक के प्रति स्वाभाविक श्रद्धा वश रहा हो, कवि ने अपने ध्येय को पूरा किया है।