पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६०)

दिल्लीश्वर के जीवन की क्रमबद्ध घटनाओं को भले ही किंचित् शैथिल्य से परन्तु निश्चित रूप से अबद्ध किये हुए इस सम्पूर्ण ख्याति-काव्य में मुख-संधि है ‘आदि पर्च’ का निम्न छप्पथ, जिसमें मङ्गलाचरण और विविध स्तुतियाँ करने तथा काव्यगत अपना दैन्य निवेदन करने के उपरान्त, उसने संक्षेप में अपनी रचना के लक्ष्य की सूचना इस प्रकार दे दी है―‘क्षत्रियों के दानव कुल में ढंढा नाम का श्रेष्ठ राक्षस था! उसकी ज्योति से पृथ्वीराज, अस्थियों से शूर वीर सामंत, जिह्वा से चंद और रूप से संयोगिता के जन्म पाया। जैसी कुछ कथा हुई तथा राजा ने जिस प्रकार योग से भोग प्राप्त किये उन्हीं शत्रु-समूह का नाश करने वाले वज्राङ्ग-वाहु की कीर्ति चंद ने कही है। श्रेष्ठ पृथ्वीराज चौहान जंगल-भूमि के प्रथम शासक हुए जिनके यहाँ साभंत, शर और भट्ट रहते थे तथा जिन्होंने सुलतान को बन्दी बनाया था। मैं कवि चंद जिनकी मित्र तथा सेवापरक हूँ तथा श्रेष्ठ योद्धा सामंत जिनके हितैषी हैं, उनकी कीर्ति वर्षों में बाँधकर मैं सार सहित प्रसारित करता हूँ:

दानव कुल छत्रीय। नाम ढूंढा रष्षस बर॥
तिहिं सु जोत प्रथिराज। सूर सामंत अस्ति भर॥
जीह जोति कविचंद। रूप संजौगि भगि भ्रम॥
इक्क दीह ऊपन्न। इक्क दीहै समय क्रम॥
जथ्थ कथ्थ होइ निर्मये। जोग भोग राजन लहिय॥
बज़्रगं बाहु अरि दल मलन। तासु कित्ति चंदह कहिय॥ ९२
प्रथम राज चहुवांन पिथ्थ बर। राजधान रंजे जंगल धर॥
मुत्र सु भट्ट सूर सामंत दर। जिहि बंध्यो सुरतांन प्रान भर॥ ९३
हे कविचंद मित्त सेवह पर। अरु सुहित सामंत सूर बर॥
बंधौं कित्ति प्रसार सार सह। अध्धों बरनि भति थिति थह॥ ६४, स० १

पृथ्वीराज द्वारा लोहाना आजानुबाहु के साहस पर उसे पुरस्कृत करना और भीमदेव के पैतृव्य भ्राताओं तथा गोरी सुलतान के भाई हुसेन खाँ को शरण देने के वृत्तान्त प्रतिमुख-रून्धियाँ हैं, जिनमें लोहाना को पुरस्कारस्वरूप बढ़ावा ऐसे अच्छे स्वामी के प्रति आस्था जागृत कर कालान्तर में किसी रणभूमि में अपने जीवन पर खेल कर उसकी ख्याति बढ़ाने वाला है। और आश्रय देना प्रत्यक्ष ही कीर्ति का द्योतक हैं। अनायास और अकारण अनेक आक्रमणों का पृथ्वीराज द्वारा मोर्चा लेना भी इसी सन्धि के अन्तर्गत आवेगा।

अपने प्रतिद्वन्दियों के कई बार छक्के छुड़ाने वाले, अनेक युद्धों के