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इसके उपरान्त दूसरे समय में उपयुक्त सूचना के अनुसार कवि ने दशावतार की कथा कही है और उसके में यह कहकर कि राम और कृष्ण की कीर्ति [अनन्त है, उसका कथन करने में अधिक समय लगेगा, आयु थोड़ी है और चौहान का भार सिर पर है-

राम किसन कित्ती सरस। कहत लगै बहु चार॥
छुच्छ आव कवि चंद की। सिर चहुयाना भार॥५८५

उसने तीसरे समय में 'दिल्ली किल्ली कथा' से चौहान का वृत्तान्त फिर आरम्भ किया है और अन्त में स्वप्न का सुफल तथा दिल्ली कथा कहकर आगे पृथ्वीराज के गुण और चाव वर्णन की सूचना देकर-

सुपन सुफल दिल्ली कथा। कही चंद बरदाय॥
अब अग्गे करि उच्चरों। पिथ्थ अँकुर गुन चाय॥५८

चौथे समय में लोहाना आजानुबाहु के साहस और पौरुष की कथा 'इक्क समय प्रिंथिराज राज ठढ्ढा सामंतह' से प्रारम्भ कर दी है तथा अंत में आगामी कथा की सूचना न देकर पाँचवाँ समय भोलाराय भीमदेव और पृथ्वीराज की शत्रुता के कारण की जिज्ञासा करने वाली शुक्री को शुक द्वारा उत्तर रूप में ग्रारम्भ किया है―

सुकी कहै सुक संभरौ। कहाँ कथा प्रति प्रान॥
पृथु भोरा भीमंग पहु। किम हुआ और बिना॥१,

इसके अंत में संभरेश चौहान को अजमेर की भूमि में रहकर कृष्ण सदृश्य अहर्निश लीला करते हुए बतलाकर छठे समय में इस वार्ता को युक्ति से जोड़ते हुए पृथ्वीराज की चौदह वर्ष की कुमारावस्था के एक आखेट में वीरों के वशीकरण की कथा कही गई है

कुँअरप्पन प्रथिराज। वर्ष विय सपत ससर तन॥

सातवें समय में ११२९ बदी फाल्गुन चतुर्दशी सोमवार को सोमेश्वर द्वारा किये गये शिवरात्रि व्रत का उल्लेख करते हुए, पृथ्वीराज पर मोहित होकर मंडोवर के नाहर राय के अपनी कन्या उन्हें देने की बात कहकर पलटने के फलस्वरूप युद्ध तथा चौहान की विजय का वर्णन कवि कर डालता है। आठवें समय में मंडोवर विजयी सोमेश्वर द्वारा युद्ध की लूट का विभाजन करके व मुगल का वृत्तान्त आ जाता है।

अति उत्कंठा पैदा करने वाली संभरेश और सोरी सुलतान के आदि बैर की कथा के मिस नवाँ समय प्रारम्भ होता है―