पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/८६

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संभरि वै चाहुआन के। अरु गज्जन वै साह॥
कहौं आदि किम बैर हुआ। अति उतकंठ कथा॥१,

और उसमें चित्ररेखा वेश्या तथा गोरी के भाई हुसेन ख़ाँ के पृथ्वीराज के शरणार्थी होने का प्रसंग चलाकर तथा युद्ध में सुलतान की पराजय और वन्दीगृह से उसकी मुक्ति का वर्णन करके बड़ी आसानी से दसवाँ समय गोरी की द्रोहाग्नि से बढ़ चलता है—


वरष एक बीते कलह। रीस रषि सुरतान॥
उर अंतर अग्गी जलै। चित सल्लै चहुआन॥१

ग्यारहवें समय में कवि पाठकों की उत्सुकता तीव्र करता हुआ, उनकी सुपरिचिता सुन्दरी चित्ररेखा की उत्पत्ति तथा अश्वपति गोरी द्वारा उसकी प्राप्ति का ललित प्रसंग चलाता है―

पुच्छि चंद बरदाइ नैं॥ चित्ररेष उतपत्ति॥
षा हुसेन ग्रावास कहि। जिस लीनी असपत्ति॥१

परन्तु अन्त में आगे की कथा की कोई सूचना नहीं देता। पूर्व सूचित न होने के कारण बारहवें समय में नाटकीय ढंग से भोलाराय भीमदेव द्वारा शिवपुरी जलाने का वर्णन प्रारम्भ होता है जो अनायास कौतूहल बढ़ा देता है तथा यह प्रसंग पृथ्वीराज द्वारा भोलाराय की पराजय में समाप्त हो जाता है तथा तेरहवें समय के साथ वड़ी युक्ति यह कहकर सम्बन्धित कर दिया जाता है कि इधर जब भीमदेव से युद्ध छिड़ा था, गोरी के आक्रमण का समाचार मिला जिससे उधर चढ़ाई की गई

सयन सिंह लग्गा सुअरि। सुनि करि बर प्रथिराज॥
सारु है संम्हौ चढ्यौं। तहं गोरी प्रति बाज॥४

ये दोनों समय भारद्वाज नानी दो मुख और एक उदर वाले पक्षी का उदाहरण देकर निम्न 'गाथा' द्वारा मिलाये जाते हैं―

भारद्वाज सु पंषी। उभयं सुष उद्दर एक॥
त्यों इह कथ्य प्रमांनं। जानिज्यौ कोविंद लोयं॥५

चौदहवाँ समय शुक्र-शुक्र के प्रश्नोत्तरी से प्रारम्भ तो होता है परन्तु उसमें पिछले समय से जोड़ने वाला एक उपयुक्त सूत्र भी सुलभ है। 'पृथ्वीराज ने शाह को बन्दी बनाकर और उससे कर लेकर सत्कार पूर्वक मुक्त कर दिया है, यह जानकर आपति सलख लमार ने अपनी पुत्री इंच्छिनी से उनके साथ विवाह करना चाहा;