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मुकि साह पहिराइ करि। दंड दियौ सलपनि॥
लगन पठाइय विग्र कर। बर व्याहन पिथ्थांन॥४,

और इसके उपरान्त विवाह का सांगोपांग वर्णन उचित ही है।

पन्द्रहवें समय को पूर्व कथा से जोड़ने वाला प्रसंग है इंच्छिनी का परिणय करके जाते हुए पृथ्वीराज पर मेवात के मुगल राजा का पूर्व बैर के कारण आक्रमण करने का निश्चय―

प्रथीराज राजत सुवर। परनि लच्छि उनमांन॥
दिसि मुग्गल संभर धनी। वैर पटक्यौ प्रान॥१

सोलहवें समय में शुकी और शुक्र नहीं आते। पिछले विवाह के दम्पति लख का वर्णन करके पूर्व कथा से इस समय का सम्बन्ध जुड़ता है और इसी के साथ कवि पृथ्वीराज से पुंडीरी दाहिमी के विवाह की चर्चा छेड़ देता है।

सत्रहवें समय का पूर्व वार्ता से सम्बन्ध स्थापित करने का कोई उद्योग न करके पृथ्वीराज की कुमारावस्था में मृगया का एक प्रसंग चलाया गया है और यही स्थिति अठारहवें समय की है जिसमें अनंगपाल के दूत द्वारा कैमास को पत्र दिलाकर दिल्ली-दान की कथा कही गई है। उन्नीसवाँ समय पृथ्वीराज के दिल्ली आकर जाना के राज्य के अधिकारी होने की पूर्व बात छप्पय में दोहराकर पिछले समय से सम्बन्ध जोड़कर, गोरी के दरवारी माधौ भाट के आगमन की कथा कह चलता है।

'पूरब दिसि गढ गढनपति' वाले समुद्र शिखर गढ़ की राजकुमारी पद्मावती की कथा बताने वाला समय बीस, 'चित्रकोट रावर नरिंद' का विवाह प्रथा से वर्णन करने वाला समय इक्कीसे, एक दिन पृथ्वीराज द्वारा होली और दीपावली का माहात्म्य पूछे और चंद द्वारा बताये जाने वाले समय बाइस और तेइस, 'षड्ड आवेटक रमै' बताकर उक्क बन की भूमि से पृथ्वीराज द्वारा धन प्राप्त करने का उल्लेख करने वाला समय चौबिस और 'आदि कथा शशिवृत्त' की प्रारम्भ करने वाला समय पच्चीस, सब परस्पर स्वतंत्र हैं तथा एक दूसरे से कोई लगाव नहीं रखते।

छब्बीसवाँ समय, पिछले देवगिरि की कुमारी 'शशिवृता समय' की स्मृति हरी रहने के कारण 'न चल्लै कमज्ज ग्रह, ग्रह घेरयौ फिरि मान' प्रारम्भ करते ही उससे सम्बद्ध हो जाता है और एक प्रकार से उसका उपसंहार सदृश। सत्ताइसवाँ समय 'देवगिरि जोते सुभर झायौ चामंडराय' कहकर पिछले समय से जोड़ दिया गया है।