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(अनंगपाल) तोमर, चौहान को दिल्ली देकर बद्रीनाथ चले गये थे तो उन्होंने फिर दिल्ली लौटकर क्यों विग्रह छेड़ा?

दिय दिल्ली चहुचान कौं। तूंअर बद्री जाइ॥
कहौ दंद क्यों पुकरिय। फिरि दिल्ली पुर आइ॥१,

इस प्रश्न से सर्व स्वतंत्र वार्ता वाला हाईसवाँ समय प्रारम्भ हो जाता है।

'दिल्लियपति प्रथिराज, अवनि आवेटक पिल्लय' से प्रारम्भ करके धघर नदी के तट पर युद्ध का वृत्तान्त बताने वाला उन्तीसवाँ समय, चहुआन वीर क्रन्नाट देस' पर चढ़ाई बताने वाला तीसवाँ समय, 'महत भयौ नृप प्रात, आइ सामंत सूर भर' वाला दरबार में उज्जैन, देवास और धार पर चढ़ाई का मंतव्य कराने वाला इकतीसवाँ समय, कितक दिवस वित्ते' मालवा में मृगया हेतु जाने वाले पृथ्वीराज का वर्णन करने वाला बत्तीसवाँ समय परस्पर पूर्वापर सम्बन्ध से रहित हैं।

बत्तीसवें समय के अन्त में सुन्दरी इन्द्रावती से विवाह को सूचना है—

पंडौ सुनि पठ्यौ तु नृप। वंडिज निसानन धाइ॥
बर इंद्रावति सुंदरी। वित्र बर करि परनाइ॥११५

और इसी कथा को ढंग विशेष से प्रारम्भ करके तैंतीसवाँ समय जोड़ा गया है। चौंतीसवें समय में यह कहकर कि इन्द्रावती से विवाह के ढाई वर्ष उपरान्त पृथ्वीराज वन में मृगया हेतु गये, कवि ने उसको पूर्व प्रसंग से सम्बन्धित कर दिया है।

पैंतीसवाँ समय एक सर्वथा नवीन वार्ता से प्रारम्भ होता है। कितक दिवस निस मात, आइ जालंधर रानी' ने काँगड़ा दुर्ग को लेने की अभिलाषा प्रकट की। इस अभियान में चौहान केवल विजयी ही नहीं हुए वरन् भोटी राजा मान की पुनी से विवाह करके लौटे। छत्तीसवाँ समय रणथम्भौर की हंसावती का विवाह बिलकुल नये रूप में आरम्भ करके उसे समाप्त करता है। पहाबराव तोमर ने असुर-राज (गोरी) को किस प्रकार पकड़ा था,

शुकी के इस प्रश्न से सैंतीसवाँ समय प्रारम्भ होता है―

दुज सम दुजी सु उच्चरिय। सति निस उज्जल देस॥
किम तूंअर पाहर पहु। गहिय सु असुर नरेस॥१

और गोरी का एक युद्ध वर्णन कर जाता है।

चन्द्र ग्रहण की घटना का वर्णन करने वाला समय अहतिस और सोमेश्वर-वध का वृत्तान्त बताने वाला समय उन्तालिस दोनों निर्लिप्त रूप से हो पृथक प्रसंग हैं। चालीसवाँ समय 'मुनि कगद प्रथिराज जब, बंध्यो भीम