पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/१०३

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- लेकर रास्ता लिया। वह रास्ता तीन, हाथ चौड़ा, कुदाम ऊचा और सुरंग की किस्म का था। दोसौ कदम चलने के बाद | वह ठहर गई और बोली,* देखना, भई, खुदा के वास्ते. कोई ऐसी | हर्कत तुम न कर बैठना कि जिसके सुबब से कोई भारी बला सिर । | पर श्रादूदे।" ... : .: मैने कहा,"तुम अगर वरवर भेरे साथ रहोगी तो मैं कभी से घबराऊगा ।' वह बोली,–“ मुमकिन है कि इस आलीशान जलसे में मुझे तुम्हारा साथ कुछ देर के लिये छोड़ना पड़े। काश, अगर मैं तुमसे जुदा होऊ तो तुम ज़रा न घबराना और दिलेरी के साथ अपने काम पर मुस्तैद रहना, और यकीन रखना कि मैं तुम्हारा खयाल । हर्गिज़ न भूलूंगी और जलसा बर्खास्त होने के कुछ केबल, या साथ ही, तुम्हारे पास फिर या मौजूद होऊगी।” उसकी इस पेचीदा बातें सुन कर एक लहजे के लिये मैं सन्नाटे में आगया, लेकिन तुरंत मैंने अपने दिल को मजबूत किया और | दिल ही दिल में यों कहा कि,–“यूसुफ ! तू ज़रा ने अब अगर खुदा को यही मंजूर है. और तेरो झज़ा हो गई हैं व जु | सुलतान के महल और जसे को तो देखो ।” मुझे खामोश देखकर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा, . | * क्यों दोस्त यूसुफ ! तुम चुप क्यों हो गये? क्या तुम्हारी हिम्मल ।। | और मर्दानगी ने बिलकुल तुम्हारा साथ छोड़ दिया ?", ". मैने कहा,“ नहीं, माहेलका ! मैं खुदा और अपनी किस्मत पर भोसर रखकर हर तरह से तैयार हूँ और तुम देखोगी कि इस | जवांमर्द यूसुफ ने अपने काम को किस खूबसूरती के साथ अंजाम दिया।"... .. इतना सुनतेही उसने मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से इकड़े कर चूम लिया और कहा,--- ६ वाकई, दोस्तमन ! इतने दिनों के बाद तुमने ऐसा कलमा कहा, जिसे मैं तुम्हारे मुह से सुनने के लिये तड़प रही थी। खैर,