पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/११

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शाहीमहलसरा

के सर को धड़ से अलग कर जमीन में डाल दिया। मुझे अपनी सार से यह उम्मीद न थी कि इतनी जल्दी अपने कामको अंजाम दें सकेगी, मगर खुद के फल से उस तल्वार ने उस अजंली को उसको शास्त्र का अच्छा एवज़ दिया और सूअर का पिल्ला कुछ देर तक हाथ व मारकर दोज़ख रसोदः ह और मैंने तल्वार का खून रूमाल से साफ करके उसे स्थान में दाखिल किया।

उस वक्त द्रयाय गलती के किनारे जिस मुकाम पर में मौजूद था, वह बिलकुछ उजाड़ था और कुछ दूरसूलों और स्वस फूलों ने एक छोटे से जंगली शकल बनाली । रात भी अधेरी थी इस लिए उस अजनबी की सूरत शकल ले में अनजान रहा कि वह कला है य गोर। । इस वाले उसे मारे जाने पर मैंने अपने जेब में से आर लाने के सामान को निकाल कर एक मोमबत्ती जलाई और उसके उजाले में मैंने उस अजनबी के सर को उसके धड़ से मिलाकर इसकी सूरत देखी। देखते ही मैं उसे पहचानं गया और कृरत से उसके नापाक चेहरे पर मैने थूका ! फिर मैंने उसकी तलाशी ली, और तलाशी लेने में उनके जेब में से, एक खतं, हाथी दाँत पर बनी हुई एक तस्वीर, एक छोटा सा छुरा, और कई । अशर्फियई पाई।

आखिर, मैंने उन सब चीज़ों को अपने जेब के हवाले कर बत्ती बुझादी और उल अजनबी की लाश को घसीट कर गोमती में बहादी । फिर उसकी तलवार से उस जगह की थोड़ी थोड़ी मिट्टी छीकर नदी में डाल दी, जहां पर उस फ़िर का खून बहाथा, साथही उसकी हत्यार भी मैंने दर्या में फेंकदी। इन सब कामों से छुट्टी पाने में मुझे एक ने ज़ियादह लगे होंगे।

किस्सह कोलाह, मैंने फिर अपनी जगह पर, यानी उस वक्त अहां पर उस शैतान को मैने मारा था, था जहांपर उस वक्त में मौजूद था, किर एक दरख्त के नीचे बैठ गया और मैंने चाहा कि मोमबत्ती जला कर इस तस्वीर को फिर गौर से देखें, जिसे मैंने उसी