पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/१५

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शांहीमहलसरा

दरवाज़े के खोलने के मौके पर हुआ करती हैं। इसके बादही उस ने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे एक ऊँचे से चबूतरे पर, जिसकी बनावट शायद कब्र सो रही होगी, चढ़ा लेगई। फिर वह नीचे उतरी और मुझे भी उसने हाथ के सहारे से नीचे उतारा । फिर तो लगातार वह मेरा हाथ पकड़े हुई पीढ़ियां उतरने लगी और जब पूरे चाली डंडे सीढ़ियों वह मुझे नीचे उतार ले गई तो फिर वैसी ही अवाज़ मेरे कानों में पहुंची, जैसा कि अभी अभी मैने ऊपर सुनी थी । शायद यह उस वजे के बंद होने की आवाज़ हो जिससे हो कर यह मुझे नीचे साई है, लेकिन यह तो अभीतक मेरा हाथ पकड़े हुई बरबर की जमीन में चल रही है तो ऊपर वाले दरवाजे को बंद किसने किया ?

खैर, जो कुछ हो वह बुढ्ढ़ी? मेरा हाथ पकड़े ही बरावर आगे बढ़ती गई। गिनती के सौ कदम वह मुझे ले गई होगी कि जमीन कुछ नम और ढालुआ मिली। और यहीं दो सौ कम लगातार ढालु ज़मीन की उतराई के बाद वह मुझे जमीन के चढाए खेल, चढ़ाई भी पूरे सौ कदम की थी जिसे तुद्ध करने के बाद छह चिं ! मुझे वहीं ठहरा और मेरा हाथ छोड़ कर फाइने किधर गई और उसके अलग होते ही मेरे कानों में एक बरहि की आवाज़ गई, जोकि किसी दवाओं के खुलने को हो । इसके बाद फिर उसने मेरा हाथ थाम लिया और शायद चौखट पार करके, ( मगर चौखट का निशान है नही पाया था) सीढ़ियां चढ़ने लगी । यहाँ पर भी पूरी चालीस, सीढ़ियाँ मुझे चढ़नी पड़ीं और जब ऊपर बरादर की जमीन में जुड़ी हैं। मुझे पहुंचाया तो नीचे वाले देवों के बंद होने की आवाज़ मैं पाई ! अब मेरा ध्यान बदल और मैं यह समझने लगा कि जरूर ये किसी हिकमत ने खोले और बंद किए जाते है, जिन्हें सुडो ने मुझ से अलग हो और उनके पास कई लो, खोला, मगर ,उन्हे बंद किया दूरही स्ने, मेर हाथ पकड़े ही एक ।

आखिरश, ऊपर आकर उसने मेंरी आखों पर की पट्टी खोल दी