पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/१९

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की तो उसने मुस्कुराहट के साथ अपनी गर्दन नीची करली और पहिला सवाल जो उसने मुझसे किया, वह यह था--

"अय, अजनबी तू कौन है ?"

वल्लाह आलम ! ऐसी सुरीली, ऐसी शीरों, ऐसी नज़ाकत से भरी झुई आवाज़ तो मैंने कभी ख्वाब में भी नहीं सुनीं थी ! मगर खैर, तब तो मैं कुछ कुछ ढीठ होगया, क्योंकि वृह परी मेरा हाथ अभी तक अपने हाथ में लिए हुई थी ! ग़रज़ यह कि मैंने साथ ही उसके सवाल का जवाब दिया, कहा--बेखुदी के आलस में गिरफ़ार एक वफ़ादार ।"

उस परी ने मेरा हाथ छोड़ और एक अजीब ढंग से भौवे मोरर और नज़रों से जहरीले तीर छोड़ कर कहा,--"और तेरा नाम ?”

मैंने भी ज़रा आँख घुमाकर कहा,--नाकाम सियफ़ाम, बदनाम, गुलफ़ाम!!!

उस परी ने कहा--अल्लाह, अल्लाह ! तु तो अजीब बेशर है ! खैर, यह तो बता कि तू क्योकर यहाँ आया, या तुझे कौन यहाँ लाया ?"

मैंने कहा,--"मैं अपने पैरों से दरदौलत को आपहुंचा और मेरी खुशक़िस्मती मुझे यहाँ तक ले आई ।"

यह सुन उस परी ने ज़रा अपनी मुस्कुराहट को रोक और एखाई के साथ त्यौरी चढ़ा कर कहा,

"बल्कि तू यों समझ कि तेरी कज़ा तुझे यहां घसीट लाई है, जो अभो तुझे अपने गले लगाएगी।"

मैंने शोख़ी के साथ कहा--अलहम्दलिल्लाह ! यह अच्छी खुशखबरी सुनाई आपने !लेकिन माहेलका ! इस वक्त मै मरने के लिए तैयार नहीं हूँ!!!"

उसने अपनी मुस्कुराहट को अपने रंगीने ओठों तले दबाकर कहा,--"मगर तुझे बहुत जल्द अपनी अजल के साथ मुलाक़ात करने के लिये तैयार हो जाना चाहिए, क्योंकि मेरी तल्वार बहुत जल्द तेरी जान का फ़ैसला किया चाहती है।"