पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४
लखनऊ की कब्र

दूसरा बयान

उस तहख़ाने में, जिसमें उस वक्त मैं मौजूद था, दिनरात बराबर था; क्योंकि वहाँपर अंधेरा इतना गहरा था कि गोया तमाम दुनियाँ के अंधेरे में सुबह होने पर वहीं आकर पनाह ली हो ! लेकिन इतना मैं जान चुका था सबेरा हो चुका है। क्योंकि जब मैं उसे परी जमात के कमरे में पर्दै की आड़ में खड़ा था, एक लौडी ने आकर उस परी जमाल से सुबह होने की ख़बर सुनाई थी; इसी से मैने समझ लिया था कि सुबह होगई है। लेकिन जैसी मनहूस जगह में उस वक्त मैं था, अंधेरे के सबके दिन रात में कोई फर्क नज़र नहीं आता था ।

अफ़सोस, मैं उसी नमदार ज़मीन में घंटों तक बैठा बैठा अपनी बदकिस्मती पर रोता रहा यहां तक कि एक तरह की बदहवासी मुझपर सवार होरही थी ! इतनेही में दोज़ल सरीखे ई तहखाने कई देवज़ा धोरे से खुला और हाथ में चिराग लिये वही मंनड्स बुङ्की सामने नज़र आई । उस पर नज़र पड़तेही मैं शेर की तरह उछल कर अपनी आय से उठ खड़ा हुआं और चहाता था कि उस वुड्रो को "पकड़ कर और उनकी गला दबाकर उसे इस बात के लिये मजबूर करें कि वह मुझे इस कैद से रिहा करदे; लेकिन उस बादजा बड्ड़ी" में मेरे मतलब को समझ लिया और झट वह चौखट के बाहर जा 'खड़ी हुई और शेरनी की तरह 'ग़रज कर बोली,--

“बस, खबर्दार ! हमज़ादे ! अगर तु अपनी जगह से ज़रा भी हिला, या मुझपर किसी किस्म की ज्यादती करने का इरादा किया तो फौरन तू अपनी जान से हाथ धोएगा । इस वक्त तेरी जान मेरे हाई में है और तू हज़ार सर धुनने पर भी भरा एक बाल भी बाकी नहीं कर सकता।

अब गज़ब ! उस खुरीट वुड्डी की बातों में सचमुच मेरा कलेजाः हिला दिया और तब मेरी हिम्मत न पड़ी कि मैं उस शैतान की