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शाहीमहलसरा

बच्ची की और बेटु या उस पर अपना वार करू' । गो, भेरी तल्वार उस वक्त तक मेरे कबज़े में थी, मगर नहीं, पतहिम्मती ने उस वक्त मुझे बिल्कुल बोदा और, बेकाम कर दिया था । लाचार मैं जहाँ का तह चुपचाप खड़ा रहा और मेरे चहरे पर उस चिराग की धुधली रौशनी डालकर उस शैतान की नानी ने कहा,--

"बदबख्त बदज़ात ! दरयाय गोमती में से एक शख़्स की बेसिर की लाश पाई गई और पहचानी गई हैं। इसके कहने की कोई जरूरत नहीं है कि वह कौन शख़्स था, लेकिन, हां, यह बिल्कुल सही है कि उसे कल रातको तुने ही मारा और उसका सर काट कर लाश गोमती में डाली । बस, सच बतला ! अगर अपनी जान की खर का चाहता हो तो जल्द सच सच बतला कि तूही ने न उस बेचारे को भारा है?

मैं उस बुड्ढी की बातों से बहुतहीं घबराया, लेकिन अपने दिल को मज़बूत कर और मरने के लिये मुस्तैद होकर ने कहा,--"तो क्या है इस बात का वादा करती है कि अगर मैं स्वस्थ सार हाल कहूं तो तू मुझे फौरन कैद से रिहा कर देगी।

बुढ्ढी हां, अगर मेरे दिल में तेरी बातों की साई को कुबूल किया तो फौरन तू आज़ाद कर दिया जायगा, बैरल तमि तू यहीं पड़ा पड़ा बे आबोदाने के तड़प तड़प कर मर जायगा । ”

मैंने कहा,--तो पेश्तर, तुझे यह बतलाना होगा कि तू मेरी बालों की सचाई क्योंकर क़बूल करेगी ?"

बुड्ढी,--यह तो बहुत सहज बात है; यानी अगर तू यह कबूल करे कि,--हां, मैंने ही उस शख्स को मारकर दर्या में डाल दिया है। तो मैं जानूगी कि तूने दरअसल सच कहा ।”

मैं बोला, तो समझ लो कि यह बात बिल्कुल सही है, और मेरी खलासी करो।”

बुड्ढी--( जलकर )“हुश, पाजी, बदमाश ! इस तरह तेरी खुलासी नहीं की जाएगी बल्कि यों है छुटकारा पा सकता हैं किन्तू