पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/३०

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जमीन में गिर गया और बहुत देरतक बदहवास पड़ा रहा।

कितनी देरतक मैं उस बेहोशी के आलम में मुबतला रहा, इसकी मुझे कुछ ख़बर ने हुई, लेकिन जब मैं होश में आया तो देखा कि बत्ती बुझ गई थी और अंधेरे का कोई ठिकाना ही न था । आख़िर, मैने उस तस्वीर को भी उठाकर अपनी फ़तुई के जेब में रखा और चाहा कि दिलाराम की बेवफाई का बदला खुद अपनी ही जान से हूं कि इतनेही में एक धमाके की आवाज़ मेरे कानों में गई और मैंने चकप कर क्या देखा कि वही परी ज़माल, कि जिस से रात को एक आलीशान कमरे में मुलाक़ात हुई थी हाथ में एक हुल मोमी शमादान लिये खड़ी है।

उसने मेरे चेहरे पर रोशनी डाली और मुझे देख कर एक आह सर्द खेंची, जिसे मैने बखूर्वी सुना । आखिर, वह बोली--बस, जल्द उदो और मेरे साथ आओ।

मैंने उठते उठते दहशत से कुछ घबरा कर कहा--मुझे कहाँ जाना होगा ?

मेरे दिल का भेद वह समझ गई और मेरी ओर देख ज़रा सा । मुस्कुरा कर बोली,--"घबराओ नहीं मैं वृह वेर्दै मनहूस आसमानी नहीं हूं।”

मैं चट उठकर उस परीजमाल के साथ हुओं और दिल ही दिल मे इस बातको मैंने समझ लिया कि जिस बुड्ढ़ो ने मुझे इस कैद में ला डाला था, शायद उसी के लिये इस परी जमाल ने यह इशारा किया हो और उसका ही नाम आसमानी हो !

अलग़रज, मैं उसे परीड़माल के पीछे चला लेकिन जिस राह से बुड्को मुझे लाई थी, या यों समझिये कि जो इस कोठरी का दरवाज़ा था, वह तो ज्यों का त्यों बंद था, मगर उसे कोठरी को पत्थर की 'दोधार में एक नई राह पैदा करके बह पोजमाल अाई थी । सो वह मुझे साथ लिये हुए, उस राह से बाहर हुई और हम दोनों के बाहर होतेही एक धमाके की आवाज़ हुई।