पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/३७

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  • शाहलस * .

पांचवां बयान ।। उस लौकी को देखते ही मैं उठ बैठा और साहब सलामत के बाद मैंने कहा, बीची ! तुम्हारा नाम क्या है ? यह सुनकर उसने खाने की रकाबी को एक तिपाई पर रख दिया और मेरी ओर देख, जरासा मुस्कुरा कर कहा, “मेरा नाम पूछकर आप क्या करेंगे ?” मैंने कहा,-* क्या नाम बतलाने में भी कोई हर्ज है ?” उसने कहा,“आखिर, आपको मेरे नाम से मतलब ही क्या है? मैंने कहा,--** मतलब यही है कि अगर जरूरत पड़े तो मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूंगी !” उसने कहा,---** आपको इसकी जरूरत ही क्या है। मैं सिर्फ इसीलिये तैनात की गई हूं कि आपको ठीक वक्त पर उम्दः खाना पहुचाया करूं, सो तो मैं करूंहीगी; बस, इसके अलावे और कोई काम में आपका नहीं कर सकती, इसलिये मेरे नाम जानने की कोई जरूरत नहीं है। हां, अगर कोई जरूरत आपको ऐसी ही अपडे तो आप मुझे स्पर्फ लड़ी' कहकर ही पुकार सकते हैं।” ये बातें उसने मुस्कुराते हुए कहीं, पर उनमें रुखाई जरूर थीं, इसलिये मैंने फिर उससे कुछ ज़ियादह छेड़छाड़ करनी मुनासिव न समझी । मुझे चुप देख वह आपही बोली और कहने लगी,--** साहवं इंडिये और स्वाना खाइये, क्योंकि देर होने से यह ठंडा हो जायगा ।. * यह सुनकर मैंने कुछ रुसावट के साथ कहा,--* मुझे आज भूख नहीं है, इसलिये अपने खाने को वापिस ले जाओ ।” मेरी ये बात सुनकर उसने अपने हाथ पर हाथ मार कर एक कहा लगाया और कहा- हज़रत ! थह नाज़ तो आप किसी नाज़नी को दिखलाइयेगा ।” वह सुनकर मुझे कुछ तो गुस्सा आया और कुछ हंसी आई, पर