पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/४६

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    • लखनऊ का कुछ * एक धात भी नहीं की है। इसस, वह सोनी लाकर रखजाती है और चली जाती है।

वह बोली,--** लेकिन, उस लौडी ने तो तुमसे कुछ न कुछ छैड छाड़ जरूरही की होगी क्योंकि वह निहायत तब्दीयतदोर औरत हैं। :: मैंने कहा,-"होगी ! मैं तो अयतक उसे निरी मुंगी बहरी समझता था, क्योंकि आजतके उसने मुझसे एक बात भी ने की ।” ... वह बोली-* लेकिन यह तो तुम सरासर झूट कहते हो ! क्यों कि उस दिन आसमानी की लाश की खबर उस वदी ने तो आकार मुझे यहाँ दी थी । झिर तुम इसे गंगी कैसे कहते हो !” ... यह बात उस्म परीजमाल ने सच कहीं। वाकई, उस बात की स्वदर इस लौडो ने मेरे सामनेही दी थी, लेकनि इस बक़ यह बात सुभे स्वाद न थी । सो मुझे कुछ और करते देख वह कुछ धैरुखी के साथ अइहे लगी* बल, बस, अब ज़ियादा सफाई न दिखलाओ। मैं समझ गई कि तुम मुझे चकसे देते हो और उस लौडी के साथ ज़रूर कुछ न कुछ लुगावद्ध रखते हो। मैं जंहतिक समझती है, तुम उसको अपने साथ लेकर यहांले भाना चाहते हों, लेकिन अगर ऐसा तुम्हारा खयाल है तो यह सरासर तुम्हारी हिमाकत है; क्योंकि " ऐसा करने से वह लौंडो तो मारी जाहीग; लेकिन तुम्हारे धड़पर ... भी सर कायम न रह सकेगा । भला यह क्या मुमकिन है कि बगैर मेरी मरी के तुम यहाँ से बाहर जसको ? ... उस परीजमाल की बातों से मैं बहुत हैरान इसलिये था कि मेरी लगांवट का हाल इसे क्यों कर मालूम हुआ ! क्या, यह आग उसी. शैतानलौडीने तोनही भड़काई। आखिर में कुछ सोचकर कहने लगी, दिलरुवा ! मुझे तालब होता है कि आज तुम इस किस्म की बहकी : देह बातें क्यों करने लगीं। अय हज़रत! मुझसे और उस लौड़ी से कि किस्म का लगाव नहीं है, लेकिन तुम्हें अगर मेरे कहने र यकीन न हो तो यह चिह होगा कि मेरे लिये खाना पहुंचाने के लिये तुम