पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/४८

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  • लखनऊ की कुछ * * अब तु मरने के लिये तैयार हो, क्योंकि जब तूने इस झांज पर अपने दस्तखत न किए तो अब मैं तुझे हर्गिज जीता नहीं छोड़ सकती। | ** अाह, मुझे इसी ऐन जवानी में मरनी पड़f } प्यारी दिखाराम !

तू कहाँ है ! अफसोस भरने के वक्त मैने तेरे चाँदसे मुखड़े की झलक । न देखी. खैर अगर तू जीती है तो वाकयामत जीती रह और अगर | मर गई है तो ज़रूर ही तू मुझे बहिश्त में दस्तयाब होगी। लेकिन - अगर मेरे दिल में कोई मलाल रहा जाता है तो यही है कि मरने से पेश्तर मैं तेरी सूरत में देख सका । ) । मेरी उस बेबसी पर उस परीजमाल को कुछ तसे न श्रया और उसने अपने हाथ को ऊँचा करके कहा,--- तो, बस, अब त मरने के लिये तैयार होजा ।” ... मैने कहा--* ले, बेरहम ! मैं तैयार हैं।” यों कहकर मैंने अपने । कलेजे को उसके आगे कर दिया। देर न थी कि उसका कातिल हाथ उस तेज़ बुरे को मेरे कलेजे के कर कर देता, कि इतने ही में उसी गौले इमारत को वही छोरदवाजा एक धमाके की आवाज़ • से खुल गया और एक वैसीही घरीज़माल आती हुई नज़र आई जैसे कि एक (परीजमाल ) मेरा खून करने के लिये तैयार थी। इस अजीब कैफियत को देखकर मैं एकदम घबरा गया और सोचने लगा कि,_* या खदा ! यह कैसा तमाशा है कि एक हौं सूरत शकल की दो परीजमाल कहाँ से आगई । ... किस्सह कोताह ! मैं तो अपने सोचने में ही गर्क था, पर इधर जो कुछ तमाशा हुआ, उसका हाल सुमिए ।.. ज्योहों धमाके की आवाज़ हुई, त्योहीं वह परीजमाल, जो मुझे मारने पर तुली हुई थी, वैतरह झिझककर कई हाथ पीछे की ओर हट गई, और ज्यों ही दूसरी पराजमातु उस कमरे के अन्दर आई त्योह वाह ! पहिली) डी फुर्ती के साथ उस कमरे से निकल भाग्दी । यह सारा काम उतनी ही देर में होगया, जितनी देर में पलक गिरती है।