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लखनऊ की कब्र

इसके बाद फिर वे सब आपस में ये बातें करने लगे।

एक,--"इस कस्बख्त को अभी कत्ल कर डालो ।”

दुसरा,--नहीं, नहीं, इसे इसी तरह यहां पड़ा रहने हो कि भूख प्यास के मारे तड़प २ कर मर जाये ।"

तीसरा, नहीं; भाई ! इस ख़ंजर को इस पाजी के कलेजे के पार कर दो। "

चौथा,--मगर नहीं, इसे इस तकब से मारना चाहिये कि जिसमें बड़ी तकलीफ़ के साथ इसकी जान निकले।”

पांचवां,-- वह कौन तब है?”

चौथा,--यही कि इसे उठाकर उसी तालाध में डालो,दो ताकि हाथ पैर बँघे रहने के सबध यह डूब जाय और निहायत तकलीफ़ के साथ इसकी जान निकलें।

नज़रीन ! मैं चुपचाप पड़ां पड़ी उन कातिलों की बात सुनता हा, लेकिन बोलां कुछ भी नहीं क्योंकि हाथ पैर बंधे रहने और हथियार छिन जाने के सबब में बिल्कुल लाचार हो रहा था । इसके अला एक बात और भी बड़े ताज्जुब की थी, जिसपर गौर करने के अब मेरा खयाल उसे वैकं कुछ बेटा हुआ था। वह बात यह है छिमें चीनकाबपोश, जहाँ तक मैं खयाल करता हैं अई नै थे अंकि वे सच नौजवान औरतें थीं, जिन्होंने अपने छिपाने के लिये सिर्फ मदनी पोशाक नहीं पहनली थीं, बल्कि अपने अपने चेहरे दर सभी ने नकाव भी डाल ली थी। इसके अलावे उस चौथी औरत की आवाज़ के सुनते ही मैं चौंक उठा था, क्योंकि उसकी आवाज़ कुछ पहचानी हुई सी मालूम देती थी, लेकिन उस वक्त मेरे स्याल में यह बात न आई किं यह औरत कौन हैं और इसकी आवाज़ मैंने कहां पर, वो कब सुनी है; क्योंकि नाज़रीन सोच सकते हैं कि उस वक्त मेरे दिल पर क्या गुज़र रही थी !

किस्सह कोताह, उसी चौथी औरत की बात को सभी ने पसन्द किया। इतने ही में आसमानी भी होश में आई और उठकर मुझे गालियां देने लगी। अब तक बह बदहवास पड़ी थी, क्योंकि