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शाहिमहलसरा

मेरी भरपूर लात उसके कूल्हे पर लगी थी । पस, उसने भी उड़ते ही उन सब नकाबपोशों की ओर हाथ हिलाकर कहा, कि--इस मूज़ी को अभी उसी तालाब में लेजा कर डाल दो।"

मतलब यह कि आसमानी की जुबानी भी यही फैसला सुनकर उन सभों ने मुझे उठा लिया और जिस रास्ते से घूमता हुआ मैं यहाँ सुक आया था, उस ओर थे सब मुझे ले चले। उस वक्त जलते हुए पीते को अपने हाथ में लेकर आसमानी बड़ी खुशी के साथ। अमे आगे चल रही थी।

मैं उस वक्त अपने जीने की बिल्कुल ऊम्मीद छोड़ कर अपने वदा को याद करने लग गया था, क्योंकि उन कंबख्त से मैंने अपने चास्ते कुछ भी कहना चुनना बिल्कुल फजूल और बेबुनियाद समझौथा ।

आखिर, वे सब भी उसी तरह पिघाले रास्ते कोखोलते हुए उसी तलाब पर पहुंचे, जिसमें से अभी थोड़ी देर पहिले मैं निकला था ।

वहाँ पहुंच कर उसी चौथी औरत ने अपने से साथियों को सुना कर कहा,--‘भई, तुम सब इसे इसी तालाब में डाल कर जल्द लौटना ज्योकि मैं ऊपर वाला दर्वाजा खुला छोड़ आई हूं, इस वास्ते मैं अब यहाँसे जाती हूँ ।”

यह न जाने कहाँ का दर्वाजा था, जिसके खुले रहने का हाल सुनकर शायद सब घबरा उठे और बोले,--आह, तुमने यह क्यो गज़ब किया । ख़ैर तो तुम अभी यही से कूंच करो ।"

यह सुनकर वह चौथी औरत बड़ी तेजी के साथ वहाँ से भागी और उसके जाने पर वे चारों औरतें मुझे लिए हुई उसी ज़ंजीर को पकड़े पानी में धंसी। अह ! उस वक्त मेरे दिल पर कैसी क़यामत बरपा हो रही थी, इसका बयान में नहीं कर सकता ! आखिर उन बे-रहमों ने गले तक पानी में जाकर मुझे ज़ोर से पानी में डाल दिया और गिरतेही मैं कुछ दूर पानी के नीचे चला गया, लेकिन पानी ने बहुत जल्द मुझे ऊपर फेंक दिया और तैराकी के फुल में हुए दखल